भारत का संविधान अपनी जटिलता और व्यापकता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसे तैयार करने में न केवल भारतीय दृष्टिकोण को महत्व दिया गया, बल्कि अनेक अन्य देशों के संविधानों के प्रावधानों से भी प्रेरणा ली गई। यह प्रक्रिया संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता और व्यापक सोच को दर्शाती है, जो देश को एक सशक्त और समृद्ध लोकतंत्र के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध थे।
भारतीय संविधान, जिसे देश का सर्वोच्च कानून माना जाता है, स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय गणराज्य के निर्माण की नींव के रूप में उभरा। यह दस्तावेज़ केवल विधिक नियमों का संग्रह नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्र की आत्मा और हमारे साझा आदर्शों का प्रतीक है।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
- यह प्रक्रिया सरल नहीं थी; यह एक गहन विचार-विमर्श और बहु-स्तरीय चर्चा का परिणाम था। संविधान सभा के सदस्यों ने अनेक विचारधाराओं, समाज के विभिन्न वर्गों और व्यापक संस्कृतियों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया। इसमें स्वाधीनता संग्राम के मूल्य, सामाजिक न्याय की अवधारणा और राष्ट्रीय एकता को एकत्रित किया गया।
- भारतीय संविधान का ढांचा संघीय है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों को शक्तियां सौंपी गई हैं। इसके अंतर्गत विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों का विभाजन हुआ है, जिससे सत्ता के दुरुपयोग की संभावनाओं को कम किया जा सके। इसे ऐसा संरचित किया गया है कि किसी एक संस्था को पूर्ण अधिकार न मिले, जिससे लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखा जा सके।
संविधान का निर्माण
- भारतीय संविधान का निर्माण एक व्यापक और गहन प्रक्रिया के तहत किया गया था। संविधान निर्माण की जिम्मेदारी संविधान सभा (Constituent Assembly) को सौंपी गई थी, जिसकी स्थापना 1946 में हुई थी। इस संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, जबकि संविधान की प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे, जिन्हें भारतीय संविधान के “निर्माता” (Architect) के रूप में जाना जाता है।
- सर्वदलीय सम्मेलन ने 1928 में भारत का संविधान तैयार करने के लिए लखनऊ में एक समिति बिठाई, इस समिति को नेहरू रिपोर्ट (ब्रिटिश भारत में ऑल पार्टीज कॉन्फ्रेंस द्वारा एक ज्ञापन था जिसमें भारत के संविधान के लिए एक नए डोमिनियन दर्जे और सरकार की संघीय व्यवस्था की अपील की गई थी।) कहा जाता है।
- संविधान निर्माण की प्रक्रिया में अनेक प्रमुख नेताओं, विधिवेत्ताओं, समाज सुधारकों और विचारकों ने भाग लिया। इस सभा में कुल 299 सदस्य थे, जो विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से आए थे। संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने में दो साल, ग्यारह महीने, और सत्रह दिन का समय लिया, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा और बहस हुई।
- 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से स्वीकृत किया गया, यह दुनिया का सबसे लम्बा लिखित राष्ट्रीय संविधान था। जिसे 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। इस प्रकार, भारतीय संविधान के निर्माण में न केवल डॉ. अंबेडकर का योगदान महत्वपूर्ण था, बल्कि इसमें जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, और अन्य नेताओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
- संविधान की खासियत यह है कि इसे संसद के बजाय संविधान सभा ने बनाया है, जिसके कारण यह संवैधानिक सर्वोच्चता प्रदान करता है। संसद संविधान को रद्द नहीं कर सकती। संविधान का निर्माण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों, सामाजिक न्याय और समता की अवधारणा पर आधारित था।
भारतीय संविधान किसने लिखा?
संविधान की मूल कॉपी प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने लिखी थी, जिसकी उन्होंने कोई फीस नहीं ली, इसकी अंग्रेजी कॉपी को लिखने में उन्हें छह महीने का समय लगा था। उन्होंने हर पेज पर अपना नाम लिखा था, आखिरी पेज पर उन्होंने अपने गुरु और दादा मास्टर राम प्रसाद सक्सेना का नाम भी लिखा था। संविधान लिखने में उन्होंने 432 से ज्यादा निब लगे थे। संविधान की हिंदी कॉपी वसंत कृष्ण वैद्य ने लिखी थी।
संविधान के उद्देश्य
भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमारे देश के मूल आदर्शों का सार प्रस्तुत करती है – न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। ये चार स्तंभ भारतीय लोकतंत्र की धुरी हैं और इनसे ही नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्तव्यों की परिभाषा होती है। संविधान ने भारतीय नागरिकों को समता, अवसर की समानता, और धर्म, जाति, लिंग, या स्थान के आधार पर भेदभाव से मुक्ति का अधिकार प्रदान किया है।
एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारतीय संविधान लचीला और कठोर दोनों है। संशोधन की प्रक्रिया इसमें समाहित है, जिससे इसे समय के साथ बदला जा सके, परंतु कुछ मूलभूत सिद्धांतों को इतनी आसानी से परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह लचीलापन संविधान को समय के साथ प्रासंगिक बनाए रखता है, जबकि इसकी स्थिरता इसे कानूनी शक्ति प्रदान करती है।
संविधान क्यों जरुरी है? (NCERT में लिखित)
हमें एक संविधान की जरूरत क्यों है और संविधान क्या करता है?
इस बात को हम दक्षिण अफ्रीका के उदाहरण से समझ सकते हैं। इस नए लोकतंत्र में दमन करने वाले और दमन सहने वाले, दोनों ही साथ-साथ समान हैसियत से रहने की योजना बना रहे थे। दोनों के लिए ही एक-दूसरे पर भरोसा कर पाना आसान नहीं था। उनके अंदर अपने-अपने किस्म के डर थे। वे अपने हितों की रखवाली भी चाहते थे। बहुसंख्यक अश्वेत इस बात पर चौकस थे कि लोकतंत्र में बहुमत के शासन वाले मूल सिद्धांत से कोई समझौता न हो। उन्हें बहुत सारे सामाजिक और आर्थिक अधिकार चाहिए थे। अल्पसंख्यक गोरों को अपनी संपत्ति और अपने विशेषाधिकारों की चिंता थी।
लंबे समय तक चली बातचीत के बाद दोनों पक्ष समझौते का रास्ता अपनाने को तैयार हुए। गोरे लोग बहुमत के शासन का सिद्धांत और एक व्यक्ति एक वोट को मान गए। वे गरीब लोगों और मजदूरों के कुछ बुनियादी अधिकारों पर भी सहमत हुए। अश्वेत लोग भी इस बात पर सहमत हुए कि सिर्फ़ बहुमत के आधार पर सारे फैसले नहीं होंगे। वे इस बात पर सहमत हुए कि बहुमत के ज़रिए अश्वेत लोग अल्पसंख्यक गोरों की जमीन-जायदाद पर कब्ज़ा नहीं करेंगे। यह समझौता आसान नहीं था। इस समझौते को लागू करना और भी कठिन था। इसे लागू करने के लिए पहली जरूरत थी कि वे एक-दूसरे पर भरोसा करें और अगर वे एक-दूसरे पर भरोसा कर भी लें तो क्या गारंटी है कि भविष्य में इसे तोड़ा नहीं जाएगा?
ऐसी स्थिति में भरोसा बनाने और बरकरार रखने का एक ही तरीका है कि जो बातें तय हुई हैं उन्हें लिखत-पढ़त में ले लिया जाए जिससे सभी लोगों पर उन्हें मानने की बाध्यता रहे।
भविष्य में शासकों का चुनाव कैसे होगा, इसके बारे में नियम तय होकर लिखित रूप में आ जाते हैं। चुनी हुई सरकार क्या-क्या कर सकती है और क्या-क्या नहीं कर सकती यह भी लिखित रूप में मौजूद होता है। इन्हीं लिखित नियमों में नागरिकों के अधिकार भी होते हैं। पर ये नियम तभी काम करेंगे जब जीतकर आने वाले लोग इन्हें आसानी से और मनमाने ढंग से नहीं बदलें। दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने इन्हीं चीज़ों का इंतज़ाम किया। वे कुछ बुनियादी नियमों पर सहमत हुए। वे इस बात पर भी सहमत हुए कि ये नियम सबसे ऊपर होंगे और कोई भी सरकार इनकी उपेक्षा नहीं कर सकती। इन्हीं बुनियादी नियमों के लिखित रूप को संविधान कहते हैं।
संविधान रचना सिर्फ दक्षिण अफ्रीका की ही खासियत नहीं है। हर देश में अलग-अलग समूहों के लोग रहते हैं। संभव है कि उनके रिश्ते दक्षिण अफ्रीका के गोरे और कालों जितने कटुतापूर्ण नहीं हों। पर दुनिया भर में लोगों के बीच विचारों और हितों में फ़र्क रहता है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली हो या न हो पर दुनिया के सभी देशों को ऐसे बुनियादी नियमों की जरूरत होती है। यह बात सिर्फ़ सरकारों पर ही लागू नहीं होती। हर संगठन के कायदे – कानून होते हैं, संविधान होता है। इस तरह आपके इलाके का कोई क्लब हो या सहकारी संगठन या फिर राजनैतिक दल, सभी को एक संविधान की जरूरत होती है।
भारतीय संविधान में अलग अलग देशों से ली गई विशेषताएँ
भारत ने कई देशों से उनके संविधान की विशेषताएँ ली है, जिनकी सूची निम्न प्रकार है-
देशों के नाम | संविधान की उधार ली गई विशेषताएं |
ब्रिटेन | 1. संसदीय सरकार 2. कानून का शासन 3. विधायी प्रक्रिया 4. एकल नागरिकता 5. कैबिनेट प्रणाली 6. विशेषाधिकार रिट 7. संसदीय विशेषाधिकार 8. द्विसदन |
आयरलैंड | 1. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत 2. राष्ट्रपति के चुनाव की विधि 3. राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 1. राष्ट्रपति पर महाभियोग 2. राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के कार्य 3. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाना 4. मौलिक अधिकार 5. न्यायिक समीक्षा 6. न्यायपालिका की स्वतंत्रता 7. संविधान की प्रस्तावना |
कनाडा | 1. संघवाद का केन्द्रापसारक रूप, जहां केंद्र राज्यों की तुलना में अधिक मजबूत होता है। 2. अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास निहित हैं 3. केंद्र राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति करता है 4. सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार |
ऑस्ट्रेलिया | 1. समवर्ती सूची की अवधारणा 2. अनुच्छेद 108 अर्थात दोनों सदनों की संयुक्त बैठक 3. व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता |
यूएसएसआर (अब रूस) | 1. मौलिक कर्तव्य 2. न्याय के आदर्श (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक), प्रस्तावना में व्यक्त किए गए। |
फ्रांस | 1. “गणतंत्र” की अवधारणा 2. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श (प्रस्तावना में निहित) |
जर्मनी | 1. आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए जाते हैं |
दक्षिण अफ्रीका | 1. राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव 2. संविधान में संशोधन |
जापान | 1. “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया” की अवधारणा 2. कानून जिनके आधार पर सर्वोच्च न्यायालय कार्य करता है। |
समापन
भारतीय संविधान केवल कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह विभिन्न देशों के संविधानों का संगम है। इसके माध्यम से भारत ने उन सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाया है जो एक समृद्ध, समावेशी और प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। भारतीय संविधान का यह वैश्विक दृष्टिकोण इसे एक अनूठा और प्रशंसनीय दस्तावेज बनाता है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूती से दर्शाता है।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है, जो न केवल विधिक ढांचे का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा है। यह हमारे गणराज्य की नींव है और इसमें निहित आदर्श हमें एकजुट, सशक्त और स्वतंत्र बनाए रखने का निरंतर प्रयास करते हैं।
भारतीय संविधान न केवल कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह भारतीय समाज की विविधता को प्रतिबिंबित करता है। इसमें सभी जातियों, धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान है, जो भारत को एक अखंड राष्ट्र के रूप में बांधने में सहायक है।
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