भारतीय पुरातत्व के इतिहास में 20 सितंबर 1924 मील का पत्थर साबित हुआ। इस दिन, इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़ में सिंधु घाटी सभ्यता की खोज की आधिकारिक घोषणा की गई थी। यह खोज प्राचीन भारतीय इतिहास को एक नया परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है। प्रसिद्ध पुरातत्वविद् नयनजोत लाहिड़ी ने अपनी पुस्तक फाइंडिंग फॉरगॉटन सिटीज़: हाउ द इंडस सिविलाइज़ेशन वाज़ डिस्कवर्ड में इस महान खोज के इतिहास का विस्तार से वर्णन किया है। यह पुस्तक अशोक विश्वविद्यालय और परमानेंट ब्लैक द्वारा सह-प्रकाशित है और सिंधु सभ्यता की खोज की शताब्दी को समर्पित है।

परिचय

दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, सिन्धु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization), जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। इसका विकास लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के बीच हुआ था। यह सभ्यता मुख्य रूप से आधुनिक पाकिस्तान और पश्चिमी भारत के सिन्धु नदी के किनारे पनपी थी, और अपने समय की सबसे उन्नत और संगठित सभ्यताओं में से एक मानी जाती है।

सिंधु घाटी सभ्यता के कई महत्वपूर्ण केंद्र थे, जिनमें हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी शामिल हैं। 2014 में भिरड़ाना को इस सभ्यता का सबसे पुराना ज्ञात शहर माना गया, जिसकी शुरुआत 7500 से 6500 ईसा पूर्व के बीच हुई थी।

सिन्धु घाटी नाम कैसे पड़ा?

यह सभ्यता सिंधु नदी घाटी के साथ फली-फूली, इसलिए इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा गया। इसे पहली ज्ञात शहरीकरण की घटना के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए इसे प्रथम शहरी सभ्यता कहा जाता है। कांस्य के व्यापक उपयोग के कारण, इसे कांस्य युग की सभ्यता भी कहा जाता है। 

खोज

सिंधु घाटी सभ्यता के 1400 से अधिक स्थलों की खोज की गई है, जिनमें से 925 स्थल भारत में स्थित हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन स्थलों में से लगभग 80 प्रतिशत स्थल सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पास पाए गए हैं। अनेक खोजों के बावजूद, इन स्थलों में से केवल 3 प्रतिशत की ही खुदाई की गई है।

यह सभ्यता इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए आज भी रोचक बनी हुई है, क्योंकि यह प्रारंभिक शहरी जीवन, व्यापार और संस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करती है।

स्थल व् वहां से प्राप्त सामग्री 

  • 7वीं सदी में, पंजाब में लोग जब घर बनाने के लिए जमीन खोदकर ईंटें निकालते थे, तो पहले से तैयार ईंटें पाई गईं। इसे उस समय दैवीय चमत्कार माना गया और इन ईंटों का उपयोग घर बनाने में किया गया। हालांकि, 1826 में चार्ल्स मैसन ने सबसे पहले इस प्राचीन सभ्यता की पहचान की। बाद में, 1856 में अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने इस सभ्यता का विस्तृत सर्वेक्षण किया। 
  • उसी वर्ष, कराची और लाहौर के बीच रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन भाइयों ने सरकार को हड़प्पा स्थल की जानकारी दी। इस खोज के बाद 1861 में अलेक्ज़ेंडर कनिंघम की अगुवाई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की स्थापना हुई।
  • 1902 में, लॉर्ड कर्ज़न द्वारा जॉन मार्शल को ASI का महानिदेशक नियुक्त किया गया, जिससे खुदाई के कार्य में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब फ्लेट ने एक लेख लिखा, जिसने इस प्राचीन सभ्यता पर प्रकाश डाला। 1921 में, दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल की खुदाई की, जिससे इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया। इसी समय के आसपास, राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।
  • सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के बाद प्रारंभिक उत्खनन चरणों के बारे में जानकारी 1920 के दशक के अंत में उपलब्ध हुई। सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष पहली बार 1920 के दशक में खोजे गए थे। इस सभ्यता के प्रमुख स्थलों में हड़प्पा (जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है) और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान के सिंध प्रांत में) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, भारत में कालीबंगा (राजस्थान), लोथल (गुजरात), राखीगढ़ी (हरियाणा), और धोलावीरा (गुजरात) जैसे स्थल भी महत्वपूर्ण हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे प्रमुख स्थलों पर उत्खनन किया गया, जिसकी रिपोर्ट क्रमशः 1931 और 1940 में प्रकाशित हुई। 
  • इन रिपोर्टों में पुरातात्विक और स्थापत्य संबंधी आंकड़ों के साथ-साथ खुदाई में मिली वस्तुओं के चित्र, नक्शे और वैज्ञानिक विश्लेषण शामिल थे। इसमें मिट्टी के बर्तन, धातु की वस्तुएं, मुहरें, कीमती आभूषण, खाद्य अवशेष और अन्य महत्वपूर्ण सामग्रियां शामिल थीं।
  • इन स्थलों की खुदाई में विशाल नगर संरचनाओं, जल निकासी प्रणालियों, ईंटों से बने घरों, और व्यापारिक केंद्रों के अवशेष मिले हैं। यह बताता है कि सिन्धु घाटी के लोग उन्नत शहरी योजना, वास्तुकला और जल प्रबंधन प्रणाली में निपुण थे। मोहनजोदड़ो में मिले नहाने के विशाल कुंड और व्यवस्थित जल निकासी तंत्र इसकी उन्नत तकनीकी क्षमताओं का प्रमाण हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ

सिंधु घाटी सभ्यता की विशिष्टता

मार्शल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई के दौरान कुछ ऐसी वस्तुएँ मिलीं, जो केवल भारतीय संस्कृति से संबंधित थीं। जैसे कई प्रकार की अंगूठियाँ और लिंग प्रतीकों वाली वस्तुएँ, जो यह संकेत देती हैं कि उस समय की सभ्यता में लिंग पूजा भी प्रचलित थी। ये प्रतीक हमें भारतीय संस्कृति की प्राचीन धार्मिक परंपराओं की ओर संकेत करते हैं, जो आज भी भारतीय समाज में देखी जा सकती हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:

  • शहरी नियोजन – इस सभ्यता के शहरों की योजना ग्रिड प्रणाली पर आधारित थी, जिसमें सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। इस उन्नत योजना के साथ, नगरों में घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए स्पष्ट स्थान निर्धारित थे।
  • जल निकासी प्रणाली – सिन्धु घाटी के लोग एक उत्कृष्ट जल निकासी प्रणाली विकसित कर चुके थे। उनके शहरों में ईंटों से बनी नालियाँ और नहरें थीं, जो यह सुनिश्चित करती थीं कि पानी सही ढंग से निकले और कोई जलभराव न हो।
  • लिपि और लेखन – इस सभ्यता की अपनी लिपि थी, जिसे अब तक पूरी तरह से पढ़ा नहीं जा सका है। सिन्धु लिपि आज भी एक रहस्य बनी हुई है और इसे समझने के प्रयास जारी हैं।
  • व्यापार और अर्थव्यवस्था – सिन्धु घाटी सभ्यता व्यापार और वाणिज्य में समृद्ध थी। इसके लोग विभिन्न क्षेत्रों के साथ व्यापार करते थे, जिसमें मेसोपोटामिया जैसे दूरस्थ क्षेत्र भी शामिल थे। इसके प्रमाण में मिले व्यापारिक मोहरें और वस्तुएं दर्शाती हैं कि यह सभ्यता एक वृहद व्यापार नेटवर्क का हिस्सा थी।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन – हालांकि सिन्धु घाटी सभ्यता के धर्म और संस्कृति के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, खुदाई में मिले मूर्तियाँ और प्रतीक इस बात का संकेत देती हैं कि संभवतः वे मातृदेवी की पूजा करते थे और प्रकृति के विभिन्न रूपों को आदर देते थे।

उत्खनन और उसके विवाद

सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन धीरे-धीरे 1900 ईसा पूर्व के बाद शुरू हुआ। इसके पतन के कारणों पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि पर्यावरणीय बदलाव, जैसे नदियों के प्रवाह में परिवर्तन या सूखा, इसके विनाश का प्रमुख कारण हो सकते हैं। वहीं, कुछ अन्य का मानना है कि बाहरी आक्रमण या सामाजिक-राजनीतिक समस्याएँ भी पतन के कारण हो सकती हैं।

शिलालेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, खुदाई के दौरान कई वैचारिक मतभेद उभर कर सामने आए। खुदाई के शुरुआती दौर में जॉन मार्शल ने खुदाई की रणनीति और प्रबंधन के बारे में निर्देश दिए। उन्होंने के.एन. दीक्षित और दया राम साहनी को बताया कि खाइयां कैसे खींची जानी चाहिए और किस दिशा में खुदाई की जानी चाहिए। हालांकि, साहनी और दीक्षित ने मार्शल के निर्देशों पर सवाल उठाए और कई मामलों में उनसे असहमत थे, खासकर जब बात ‘इंडो-सुमेरियन’ नामकरण की आई। साहनी ने हड़प्पा में मिली सांप की मूर्ति और पीपल के पेड़ की मुहर के बारे में मार्शल से सवाल किया था, जिसके कारण भारतीय और सुमेरियन सभ्यताओं के बीच संबंधों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पड़ी। 

साहनी को हड़प्पा में एक बड़ा शंख चम्मच मिला था, जिसका उपयोग हिंदू अनुष्ठानों में किया जाता था। इस चम्मच को संस्कृत में “अर्घा” कहा जाता है और इसका उपयोग जल चढ़ाने के लिए किया जाता है। साहनी ने मार्शल को इसके बारे में बताया और इसे भारतीय अनुष्ठानों से जोड़ा। इसी तरह, दीक्षित ने भारतीय और सुमेरियन लेखन के बीच अंतर को रेखांकित किया, जहां सुमेरियन रेखाएं खड़ी थीं, जबकि भारतीय लेखन दाएं से बाएं चलता था। ‘इंडो-सुमेरियन’ नाम का परित्याग दीक्षित और साहनी के अवलोकन के आधार पर, मार्शल ने निष्कर्ष निकाला कि सुमेरियों और सिंधु घाटी सभ्यता के बीच समानताएं व्यापार या सांस्कृतिक संबंधों तक सीमित थीं और संस्कृति में समानता के कारण नहीं थीं। इसलिए, उन्होंने ‘इंडो-सुमेरियन’ शब्द को त्याग दिया और इसे केवल ‘सिंधु सभ्यता’ के रूप में स्वीकार किया। 1926-27 में एक छोटी पुरातात्विक प्रदर्शनी के दौरान मार्शल ने कहा कि सिंधु सभ्यता का सुमेरियन सभ्यता से घनिष्ठ संबंध होने के बावजूद, ये दोनों सभ्यताएँ अपनी विशिष्टता के कारण अलग थीं।

आज के समय में सिन्धु घाटी सभ्यता की हालत

आज के समय में, सिन्धु घाटी सभ्यता के स्थलों की खुदाई और अध्ययन जारी है। हालाँकि इनमें से कई स्थल पर्यावरणीय और मानव निर्मित समस्याओं के कारण धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। पाकिस्तान और भारत में कई स्थल अब आधुनिक शहरों और खेती के विस्तार के चलते खतरे में हैं। 

साथ ही, कुछ स्थलों का संरक्षण प्रयासों के बावजूद सही तरीके से रखरखाव नहीं हो पा रहा है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण भी कई ऐतिहासिक स्थल खराब हो रहे हैं। इसके बावजूद, भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पुरातत्वविद इस सभ्यता के अवशेषों को बचाने और उनके महत्त्व को उजागर करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। 

निष्कर्ष

सिन्धु घाटी सभ्यता मानव इतिहास की एक महत्वपूर्ण धरोहर है, सिंधु घाटी सभ्यता की खोज और अध्ययन आज भी पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसने शहरीकरण, वास्तुकला, व्यापार और सांस्कृतिक विकास के कई आयामों को प्रभावित किया। इसके द्वारा विकसित की गई उन्नत प्रौद्योगिकी और शहरी प्रणाली आधुनिक समाज के लिए प्रेरणादायक है। हालाँकि समय के साथ इस सभ्यता के अवशेष क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, लेकिन इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए इसके संरक्षण के प्रयास निरंतर किए जा रहे हैं।

इस सभ्यता ने हमें बताया कि प्राचीन भारत में उन्नत नगर संरचनाएँ, व्यापारिक संबंध और सांस्कृतिक विरासत कितनी समृद्ध थी। हालाँकि सभ्यता के कई पहलू शुरुआती खुदाई और रिपोर्टों से पता चले थे, लेकिन कुछ पहलू अभी भी अनकहे हैं जिन्हें पुरालेख और भविष्य की खुदाई के माध्यम से समझने की आवश्यकता है। 

साहनी और दीक्षित जैसे विद्वानों के विचारों ने सिंधु सभ्यता को भारतीय परंपराओं और संस्कृति से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह खोज हमें भारतीय इतिहास और सभ्यता की विशिष्टता को समझने में महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करती है।

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