भारत का इतिहास वीरता और बलिदान की अनगिनत कहानियों से भरा हुआ है। इन कहानियों में असम के वीर योद्धा लचित बोरफुकन का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनकी स्मृति में हर वर्ष 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। यह दिन असमिया संस्कृति, गौरव, और स्वतंत्रता के प्रति उनके अद्वितीय योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए समर्पित है।

लचित बोरफुकन का जीवन परिचय

लचित बोरफुकन असम के अहोम साम्राज्य के सेनापति थे। उनका जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। उनके पिता, मोमाई तमुली बोरबरुआ, अहोम साम्राज्य में एक उच्च पदाधिकारी थे। लचित को सैन्य और प्रशासनिक कौशल में बचपन से ही प्रशिक्षित किया गया था। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें 1667 में अहोम साम्राज्य का सेनापति (बोरफुकन) बना दिया।

उन्हें 1671 के सराईघाट के युद्ध में अहोम सेना का नेतृत्व करने और मुगल सेना के आक्रमण को विफल करने के लिए जाना जाता है। यह युद्ध उनकी अद्वितीय सैन्य रणनीतियों और वीरता का प्रमाण है। मुगलों की विशाल सेना का नेतृत्व राजा रामसिंह I कर रहे थे, लेकिन लचित ने अपने कुशल नेतृत्व से उन्हें पराजित किया। दुर्भाग्यवश, इस ऐतिहासिक विजय के लगभग एक वर्ष बाद, अप्रैल 1672 में लचित बोरफुकन का निधन हो गया।

आज के समय में लचित बोरफुकन के प्रति गहरी रुचि और सम्मान देखने को मिलता है। वह असम की ऐतिहासिक स्वायत्तता और वीरता के एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में उभरे हैं। उनका जीवन और कृतित्व असमिया पहचान और गौरव का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।

सराईघाट का युद्ध: एक ऐतिहासिक मोड़

सराईघाट का युद्ध 1671 में मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित सराईघाट (वर्तमान गुवाहाटी, असम) में हुआ। मुगल सेना का नेतृत्व राजा राम सिंह I कर रहे थे, जबकि अहोम सेना का नेतृत्व लचित बोरफुकन ने किया।

यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह मुगलों का असम पर कब्जा करने का अंतिम प्रयास था, लेकिन लचित बोरफुकन की रणनीतिक कुशलता ने इसे असफल बना दिया। लचित ने युद्ध में कई रणनीतियां अपनाईं, जैसे कि भूगोल का कुशल उपयोग, कूटनीतिक समझौतों, गुरिल्ला युद्ध नीति, और मनोवैज्ञानिक युद्ध। उन्होंने कमजोर मुगल नौसेना को हराने के लिए सभी संसाधनों का उपयोग किया और अंततः अहोम सेना को विजय दिलाई।

मुगल सेना में 30,000 पैदल सैनिक, 15,000 तीरंदाज, 18,000 तुर्की घुड़सवार, 5,000 तोपची, और 1,000 से अधिक तोपों के साथ कई नावें शामिल थीं। इसके विपरीत, अहोम सेना संसाधनों और संख्या में काफी कम थी।

मुगल सेना ने लचित को कमजोर करने के लिए उन्हें सेनापति पद से हटवाने का प्रयास किया, लेकिन राजा के प्रधानमंत्री आटन बुरागोहेन के हस्तक्षेप से यह योजना विफल रही। अंततः लचित बोरफुकन ने मुगल सेना को पराजित किया, और उन्हें गुवाहाटी से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। इस ऐतिहासिक जीत के बाद, 24 नवंबर को लचित दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

लचित दिवस का महत्व

यह दिवस वीरता, देशभक्ति और असमिया संस्कृति की रक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य युवा पीढ़ी को लचित बोरफुकन की वीरता से प्रेरित करना है। असम सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा इस अवसर पर समारोह, परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारतीय नौसेना भी इस दिन को विशेष रूप से मनाती है, जो लचित की समुद्री रणनीतियों को सम्मान देती है।

लचित बोरफुकन की विरासत

लचित बोरफुकन की वीरता को स्मरण करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। 1999 में, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) ने सर्वश्रेष्ठ कैडेट को दिए जाने वाले लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक की स्थापना की। इसके अतिरिक्त, ताई अहोम युवा परिषद (TAYPA) असम के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को महाबीर लचित पुरस्कार से सम्मानित करती है।

इनकी स्मृति को संरक्षित रखने के लिए, लचित बोरफुकन का मैडम (स्मारक) असम के जोरहाट में बनाया गया है। यहां उनकी अंतिम स्मृतियां संरक्षित हैं, जो उनके योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं।

निष्कर्ष

लचित बोरफुकन का जीवन एक प्रेरणा है कि किस प्रकार अदम्य साहस, दूरदर्शी रणनीति और मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण के बल पर किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। लचित दिवस न केवल असम बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय है। यह दिन हमें अपने इतिहास से जुड़ने और वीरता के मूल्यों को आत्मसात करने का संदेश देता है।

FAQs 

प्रश्न 1: लचित दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: लचित दिवस हर वर्ष 24 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन असम के वीर सेनापति लचित बोरफुकन की जन्मतिथि के उपलक्ष्य में उनकी वीरता और देशभक्ति को याद करने के लिए मनाया जाता है।

प्रश्न 2: सराईघाट का युद्ध क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर: सराईघाट का युद्ध 1671 में लड़ा गया था, जिसमें लचित बोरफुकन ने मुगलों की विशाल सेना को हराकर असम की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा। यह युद्ध उनकी रणनीतिक कौशल और साहस का प्रतीक है।

प्रश्न 3: लचित बोरफुकन का मुख्य योगदान क्या था?
उत्तर: लचित बोरफुकन का मुख्य योगदान सराईघाट के युद्ध में मुगल सेना को हराना था। उन्होंने अपने नेतृत्व और साहस से अहोम साम्राज्य को मुगलों के आक्रमण से बचाया।

प्रश्न 4: लचित दिवस कैसे मनाया जाता है?
उत्तर: इस दिन असम और भारत के अन्य हिस्सों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, परेड और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। भारतीय नौसेना भी लचित की वीरता को सम्मानित करने के लिए इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है।

प्रश्न 5: लचित बोरफुकन का क्या आदर्श वाक्य था?
उत्तर: लचित बोरफुकन ने हमेशा देशभक्ति, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा को प्राथमिकता दी। उनके प्रसिद्ध शब्द थे: “मेरे देश की रक्षा के लिए यदि मेरे अपने भी रास्ते में आएं, तो मैं उन्हें नहीं छोड़ूंगा।”

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