गुढी पाडवा एक वसंत ऋतु का त्योहार है, जो मराठी और कोंकणी हिंदुओं के लिए चंद्र-सौर नववर्ष की शुरुआत को दर्शाता है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गोवा और दमन में चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। इस त्योहार का प्रमुख आकर्षण रंगीन रंगोली, विशेष गुढी ध्वज (गुढी द्वजा), पारंपरिक वेशभूषा, पारंपरिक व्यंजन और उत्सव की धूमधाम होती है। गुढी एक लंबी लकड़ी की छड़ी पर एक साड़ी या धोती को सजाकर बनाई जाती है, जिसे आम और नीम के पत्तों, फूलों की माला और शक्कर की माला (गाठी) से अलंकृत किया जाता है। इसके शीर्ष पर उल्टा रखा गया तांबे या चांदी का कलश रखा जाता है, जो विजय और समृद्धि का प्रतीक होता है।
अर्थ और व्युत्पत्ति
- गुढी का अर्थ ‘ध्वज’ होता है और इसे दक्षिण भारतीय मूल का शब्द माना जाता है।
- पाडवा शब्द संस्कृत के “प्रतिपद” से लिया गया है, जिसका अर्थ हर चंद्र माह के पहले दिन से है। इस दिन को बलिप्रतिपदा से भी जोड़ा जाता है।
गुढी पाडवा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
इसे वसंत ऋतु के आगमन और रबी की फसलों की कटाई के साथ जोड़ा जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि और समय की रचना की थी। इसे भगवान राम के लंका विजय के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है। इसके अलावा, यह दिन शालिवाहन संवत की शुरुआत का प्रतीक है, जिसे सम्राट शालिवाहन ने हूणों पर विजय प्राप्त करने के बाद प्रारंभ किया था। ग्रामीण महाराष्ट्र में इसे भगवान शिव के तांडव नृत्य और सामूहिक पूजा से भी जोड़ा जाता है।
गुढी का महत्व और निर्माण
गुढी पाडवा पर प्रत्येक घर के सामने गुढी लगाई जाती है। यह एक चमकीले रेशमी कपड़े से ढकी हुई होती है, जिसे एक लंबी बांस की लकड़ी के शीर्ष पर बांधा जाता है। इसके साथ नीम और आम के पत्ते तथा फूलों की माला होती है और इसे चांदी, कांस्य या तांबे के कलश से ढका जाता है।
इसे लगाने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- यह सम्राट शालिवाहन की विजय का प्रतीक है, जब उन्होंने हूणों को हराकर पायठण में प्रवेश किया था।
- यह ब्रह्म पुराण में वर्णित ब्रह्मध्वज का प्रतीक माना जाता है।
- इसे इंद्र ध्वज भी माना जाता है, जो समृद्धि और अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
- इसे घर में बुरी शक्तियों को दूर रखने और सुख-समृद्धि लाने के लिए लगाया जाता है।
गुढी पाडवा के उत्सव और पारंपरिक व्यंजन
गुढी पाडवा के दिन परिवार विशेष प्रकार के व्यंजन बनाते हैं, जिनमें विशेष रूप से नीम के पत्ते और गुड़ का मिश्रण शामिल होता है। इसमें इमली, धनिया और कुछ अन्य मसाले भी मिलाए जाते हैं। यह मिश्रण जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों का प्रतीक है और इसे स्वास्थ्यवर्धक भी माना जाता है।
इस दिन घरों को रंगोली से सजाया जाता है, पारंपरिक वेशभूषा पहनी जाती है, शोभायात्राएं निकाली जाती हैं और नृत्य-संगीत का आयोजन किया जाता है। साथ ही, इस दिन नई वस्तुओं की खरीदारी शुभ मानी जाती है।
अन्य भारतीय राज्यों में गुढी पाडवा का महत्व
महाराष्ट्र में इस दिन को गुढी पाडवा (गुढी पाडवा) कहा जाता है, जबकि कोंकणी हिंदू इसे सौसार पाडवो या सौसार पाडयो के रूप में मनाते हैं। कर्नाटक के कन्नड़ हिंदू इसे युगादि (युगादि) के रूप में मनाते हैं, जबकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के तेलुगु हिंदू भी इसी दिन को उगादि के रूप में मनाते हैं। सिंधी समाज में इसे चेटी चंद के रूप में मनाया जाता है, जो झूलेलाल देव के प्रकट होने का दिन माना जाता है। इस अवसर पर विशेष रूप से तहरी (मीठे चावल) और साई भाजी जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं।
हालांकि, यह सभी हिंदुओं के लिए नववर्ष का दिन नहीं है। गुजरात में यह दीपावली के समय मनाया जाता है, जबकि उत्तर भारत, पंजाब और बंगाल में नववर्ष वैशाखी के दिन (13-15 अप्रैल) पड़ता है। यह नववर्ष भारतीय उपमहाद्वीप के हिंदुओं के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया के हिंदू और बौद्ध समुदायों में भी लोकप्रिय है।
निष्कर्ष
गुढी पाडवा न केवल नववर्ष की शुरुआत को दर्शाता है, बल्कि यह ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व हमें जीवन में नई शुरुआत, सकारात्मकता और समृद्धि की सीख देता है।