अब तक की कहानी
पिछले हफ्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में नई ‘लेडी जस्टिस’ की प्रतिमा का अनावरण किया, जिसने पुरानी ‘लेडी जस्टिस’ की जगह ले ली। नई प्रतिमा साड़ी पहने हुए है, उसकी आंखों पर पट्टी नहीं है, और वह एक हाथ में तराजू तथा दूसरे हाथ में भारतीय संविधान को धारण करती है।
पृष्ठभूमि क्या है?
‘लेडी जस्टिस’ की उत्पत्ति को रोमन पौराणिक कथाओं की न्याय की देवी जस्टिटिया से जोड़ा जाता है। इसे आमतौर पर आंखों पर पट्टी, हाथ में तराजू और तलवार के साथ दर्शाया जाता है।
- पट्टी: इसे पुनर्जागरण काल (14वीं सदी) में जोड़ा गया। शुरू में यह न्याय व्यवस्था की भ्रष्टता का व्यंग्य था, लेकिन 17वीं-18वीं सदी के प्रबोधन काल में इसे निष्पक्षता का प्रतीक माना गया। इसका अर्थ है कि न्याय जाति, वर्ग, शक्ति और धन से परे होकर निष्पक्ष रूप से दिया जाए।
- तराजू: यह संतुलन का प्रतीक है, जो बताता है कि अदालत को दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद ही निर्णय देना चाहिए।
- तलवार: यह कानून की शक्ति और अधिकार का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि कानून सुरक्षा भी दे सकता है और दंड भी।
बदलाव क्यों किया गया?
जब ब्रिटिश शासन ने भारत में अपनी पकड़ बनाई, तो उन्होंने अपनी कानूनी प्रणाली को लागू किया। ‘लेडी जस्टिस’ को भारत में इसी दौरान न्यायालयों के बाहर प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया।
नई प्रतिमा उपनिवेशवाद से मुक्ति (Decoloniality) की दिशा में एक कदम है।
- साड़ी पहनना: यह भारतीय परंपरा के करीब लाने का प्रयास है।
- आंखों से पट्टी हटाना: यह बताता है कि कानून अंधा नहीं है; वह सबको समान रूप से ‘देखता’ है। भारत की सामाजिक विविधता और वंचित वर्गों के साथ होने वाले भेदभाव को ध्यान में रखते हुए कानून को हर मामले को उचित दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
- तलवार की जगह संविधान: यह संविधान की सर्वोच्चता और भारतीय न्यायशास्त्र में उसके महत्व को दर्शाता है।
- तराजू का संरक्षण: यह बताता है कि अदालतें साक्ष्यों को निष्पक्ष रूप से तौलना और दोनों पक्षों को सुनना जारी रखेंगी।
क्या तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) खारिज की, जिसमें तीन साल में देशभर की अदालतों में लंबित 5 करोड़ मामलों का निपटारा करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने इसे व्यावहारिक रूप से असंभव बताया, लेकिन ‘न्याय में देरी का मतलब न्याय से इनकार’ है। न्याय प्रणाली में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
- जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार
- जजों की नियुक्ति के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) को पिछले आठ वर्षों से अंतिम रूप नहीं दिया गया है। इसे सरकार और न्यायपालिका को मिलकर तुरंत अंतिम रूप देना चाहिए, ताकि प्रक्रिया पारदर्शी और जवाबदेह बन सके।
- सामाजिक विविधता का प्रतिनिधित्व
- उच्च न्यायालयों में पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व 25% से भी कम है, जबकि महिलाओं का प्रतिशत 15% से नीचे है। उच्च न्यायपालिका की नियुक्तियों में भारत की सामाजिक विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
- न्यायालयों में रिक्त पद भरना
- उच्च न्यायालय लगभग 60-70% क्षमता पर कार्य करते हैं, जिससे 60 लाख से अधिक मामलों का लंबित रहना स्वाभाविक है। उच्च न्यायालयों में कोलेजियम की सिफारिशों के आधार पर सरकार को नियुक्तियां तेजी से करनी चाहिए।
- निचली अदालतों में 4.4 करोड़ लंबित मामलों के लिए राज्यों को रिक्तियां तुरंत भरनी चाहिए।
- संवैधानिक महत्व के मामलों को प्राथमिकता
- संविधान संशोधनों/कानूनों की वैधता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को उच्च न्यायपालिका द्वारा प्राथमिकता पर सुना जाना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न: भारत में नई लेडी जस्टिस प्रतिमा क्यों स्थापित की गई?
उत्तर: भारत के सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने और औपनिवेशिक छवि से दूर जाने के लिए।
प्रश्न: आंखों पर पट्टी न बांधने का क्या मतलब है?
उत्तर: यह पारदर्शिता और संदर्भ-संवेदनशील न्याय पर जोर देता है।
प्रश्न: नए कानून में संविधान तलवार की जगह कैसे लेता है?
उत्तर: यह भारतीय कानून में संविधान के सर्वोच्च अधिकार को उजागर करता है।
प्रश्न: भारत की न्यायपालिका के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
उत्तर: न्यायिक देरी, रिक्तियाँ और विविधता की कमी प्रमुख चिंताएँ हैं।
प्रश्न: भारत में न्याय वितरण में सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
उत्तर: मामला प्रबंधन, न्यायिक नियुक्तियाँ और मामलों की प्राथमिकता में सुधार की आवश्यकता है।
प्रश्न: नई प्रतिमा उपनिवेशवाद विरोधी भावना को कैसे दर्शाती है?
उत्तर: भारतीय सांस्कृतिक तत्वों को अपनाकर और संविधान की सर्वोच्चता पर जोर देकर।
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