भारतीय संविधान में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSP) संविधान के भाग IV में उल्लिखित हैं। ये सिद्धांत भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की दिशा में देश की सरकारों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकारों की तरह, ये सिद्धांत भी भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें सीधे अदालतों के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता है। फिर भी, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साकार करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSP) क्या हैं?

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत संविधान में मार्गदर्शक सिद्धांत हैं जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारों को नीतियां और कानून बनाते समय ध्यान में रखना चाहिए। ये सिद्धांत सरकार को भारतीय संविधान के सामाजिक और आर्थिक न्याय के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

संविधान के भाग IV में निहित यह प्रावधान संविधान सभा के सदस्यों की दृष्टि को दर्शाता है, जो देश में सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध थे। ये सिद्धांत समतावादी समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करते हैं तथा संविधान की प्रस्तावना में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को साकार करने का प्रयास करते हैं।

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का वर्गीकरण

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को उनके उद्देश्यों और उत्पत्ति के स्रोतों के आधार पर तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

1. समाजवादी सिद्धांत

ये सिद्धांत एक सामाजिक-आर्थिक संरचना की स्थापना पर जोर देते हैं जो सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करती है। इन सिद्धांतों के अनुसार, राज्य को निम्नलिखित कार्य करने होते हैं:

  • अनुच्छेद 38: राज्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देगा और असमानताओं को कम करेगा।
  • अनुच्छेद 39: राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि सभी नागरिकों के पास आजीविका के पर्याप्त साधन हों और किसी भी व्यक्ति या समूह के बीच धन का असमान वितरण न हो।
  • अनुच्छेद 39A: गरीबों को समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना।
  • अनुच्छेद 41: यह प्रावधान राज्य को बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता के मामलों में नागरिकों को राहत प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद 42: काम की न्यायपूर्ण और मानवीय स्थिति सुनिश्चित करना और मातृत्व लाभ प्रदान करना।
  • अनुच्छेद 43: राज्य सभी श्रमिकों के लिए जीविका मजदूरी और जीवन स्तर को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना।
  • अनुच्छेद 47: लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना।
2. गांधीवादी सिद्धांत

महात्मा गांधी के विचारों और आदर्शों से प्रेरित, ये सिद्धांत ग्रामीण विकास, सहकारिता, स्वशासन और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं। इन सिद्धांतों में शामिल हैं:

  • अनुच्छेद 40: राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वशासन को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों की स्थापना करेगा।
  • अनुच्छेद 43: ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
  • अनुच्छेद 43B: सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त संचालन और लोकतांत्रिक नियंत्रण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • अनुच्छेद 46: राज्य कमजोर वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा।
  • अनुच्छेद 47: स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक द्रव्यों और शराब के सेवन पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 48: गायों, बछड़ों और अन्य दूध देने वाले और कृषि पशुओं के वध पर प्रतिबंध और उनकी नस्लों में सुधार।
3. उदार-बौद्धिक सिद्धांत

ये सिद्धांत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और समाज में प्रगतिशील सुधारों को बढ़ावा देते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • अनुच्छेद 44: राज्य देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 45: राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि सभी बच्चों को बचपन में देखभाल और शिक्षा उपलब्ध हो।
  • अनुच्छेद 48A: राज्य पर्यावरण की रक्षा करेगा और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कदम उठाएगा।
  • अनुच्छेद 49: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत, स्मारकों और राष्ट्रीय महत्व की घोषित वस्तुओं की सुरक्षा करना।
  • अनुच्छेद 50: राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना।
  • अनुच्छेद 51:
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना और राष्ट्रों के बीच सम्मानजनक और न्यायपूर्ण संबंध बनाए रखना।
    • अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
    • मध्यस्थता के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटारे को प्रोत्साहित करना।

डीपीएसपी और मौलिक अधिकारों के बीच संबंध

हालांकि मौलिक अधिकार और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत संविधान के अलग-अलग हिस्सों में शामिल हैं, लेकिन दोनों का उद्देश्य नागरिकों की भलाई है। मौलिक अधिकारों को न्यायालयों द्वारा लागू किया जा सकता है, जबकि राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।

हालांकि, कई मौकों पर न्यायालयों ने राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए कुछ मामलों में निर्णय दिए हैं। यह एक तरह से दिखाता है कि नीति निर्माण और शासन में इन सिद्धांतों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।

42वें संविधान संशोधन द्वारा इन सिद्धांतों में कुछ नए प्रावधान जोड़े गए, जिनमें अनुच्छेद 39ए शामिल है जो गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता की बात करता है और अनुच्छेद 48ए जो पर्यावरण के संरक्षण और सुधार की बात करता है।

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों की विशेषताएं

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • गैर-न्यायसंगत: ये सिद्धांत कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं। इन्हें न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है।
  • कल्याणकारी राज्य की स्थापना: इन सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य भारत को कल्याणकारी राज्य बनाना है।
  • सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र: ये सिद्धांत सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना में मदद करते हैं।
  • न्यायपालिका को सहायता: ये सिद्धांत संवैधानिक व्याख्याओं में न्यायालयों की मदद करते हैं, खासकर तब जब कोई कानून सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।

नीति के निर्देशक सिद्धांतों की उपयोगिता

हालाँकि इन्हें न्यायालयों के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन इनकी उपयोगिता बहुत अधिक है। ये नीति निर्माण में स्थिरता प्रदान करने और सरकारी कार्यों को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये सिद्धांत एक ऐसे मानदंड के रूप में कार्य करते हैं जिसके आधार पर सरकारों के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जा सकता है।

इन सिद्धांतों के तहत राज्य को सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, ताकि एक समतावादी समाज की स्थापना की जा सके। ये सिद्धांत सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं और इन्हें किसी भी राज्य की नीति का हिस्सा बनाया जाना आवश्यक है।

निष्कर्ष

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत भारतीय संविधान की विरासत हैं, जिनका उद्देश्य समाज में न्याय, समानता और बंधुत्व को बढ़ावा देना है। इन सिद्धांतों का महत्व संविधान सभा के उद्देश्यों और आदर्शों में निहित है, जो भारत को एक सामाजिक और आर्थिक रूप से न्यायपूर्ण राष्ट्र के रूप में देखना चाहती थी।

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