बाल दिवस हर साल 14 नवंबर को भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती का प्रतीक है, जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री और बच्चों के प्रति अपने गहरे स्नेह के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कहा जाता था। नेहरूजी का मानना था कि बच्चे राष्ट्र का भविष्य हैं, और उनकी शिक्षा व विकास में निवेश करना एक मजबूत और उज्ज्वल भारत का निर्माण करना है।

इतिहास

5 नवंबर 1948 को पहली बार “फूल दिवस” के रूप में बाल दिवस मनाया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय बाल कल्याण परिषद (ICCW) द्वारा यूनाइटेड नेशंस अपील फॉर चिल्ड्रन (UNAC) के लिए “फूल टोकन” बेचकर धन जुटाना था। 30 जुलाई 1949 को इसे “बाल दिवस” के रूप में मनाने की शुरुआत हुई, जो रेडियो, लेखों और सिनेमा के माध्यम से प्रचारित किया गया।

1951 में, व. म. कुलकर्णी, एक संयुक्त राष्ट्र सामाजिक कल्याण साथी के रूप में इंग्लैंड में बच्चों के पुनर्वास पर अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने पाया कि भारत में वंचित बच्चों के लिए कोई सुव्यवस्थित सहायता नहीं थी। इंग्लैंड में क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय के जन्मदिन पर “फ्लैग डे” का आयोजन देख कुलकर्णी ने सुझाव दिया कि नेहरू का जन्मदिन एक “फ्लैग डे” के रूप में मनाया जा सकता है, जिससे बाल कल्याण के लिए धन जुटाया जा सके। नेहरू ने यह विचार पहले असहजता से स्वीकार किया, परन्तु अंततः सहमति दी।

14 नवंबर को नेहरू का जन्मदिन 1940 के दशक से ही भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच मनाया जाता रहा है। 1954 में पहली बार इसे “बाल दिवस” के रूप में मनाया गया। उस वर्ष दिल्ली के राष्ट्रीय स्टेडियम में आयोजित समारोह में 50,000 से अधिक बच्चों ने भाग लिया। 1957 में भारत सरकार ने इसे आधिकारिक तौर पर बाल दिवस घोषित किया। भारतीय डाक विभाग ने “बाल दिन” पर पहली बार विशेष डाक टिकट और पहले दिन का कवर जारी किया।

बाल दिवस का महत्व

बाल दिवस केवल बच्चों के लिए एक विशेष दिन नहीं है, बल्कि यह बच्चों के अधिकारों, उनके कल्याण, और शिक्षा के महत्व पर जोर देने का एक अवसर भी है। पंडित नेहरू ने हमेशा कहा, “आज के बच्चे कल का भारत बनाएंगे।” उनकी यह सोच थी कि हर बच्चे को अपनी क्षमता को पहचानने और समाज में अपना योगदान देने का अवसर मिलना चाहिए।

बाल दिवस बच्चों के विकास, शिक्षा और उनकी सुरक्षा की दिशा में काम करने की प्रेरणा देता है। इस दिन देश भर के स्कूलों और संस्थानों में विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जैसे:

  • सांस्कृतिक कार्यक्रम: नृत्य, संगीत और नाटक।
  • खेलकूद प्रतियोगिताएं।
  • संपूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य पर जागरूकता कार्यक्रम।
  • सामाजिक सेवाएं और बच्चों की भलाई के लिए अभियानों की शुरुआत।

पंडित जवाहरलाल नेहरू का बच्चों के प्रति दृष्टिकोण

जवाहरलाल नेहरू को बच्चे “चाचा नेहरू” कहकर पुकारते थे। नेहरू बच्चों को देश का भविष्य मानते थे और उन्हें देखकर आनंदित होते थे। उन्होंने 1955 में भारतीय बाल फिल्म सोसाइटी की स्थापना भी की ताकि भारतीय बच्चे स्वयं को पर्दे पर देख सकें।

नेहरू की बच्चों के प्रति संवेदनशीलता पर उनके सहयोगी म. ओ. माथाई ने लिखा है, “नेहरू बच्चों की मासूमियत और चमकती आँखों में भारत का भविष्य देखते थे। उनका मानना था कि बच्चों और उनकी माताओं पर खर्च किया गया पैसा भविष्य के लिए एक मजबूत निवेश है।”

1958 में, एक साक्षात्कार में नेहरू से पूछा गया कि क्या उन्हें बच्चों से इसलिए प्रेम है क्योंकि वे देश के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो नेहरू ने जवाब दिया, “मेरा मानना है कि आज के बच्चे कल का भारत बनाएँगे, और हम उन्हें जिस प्रकार से बढ़ाएँगे, वही देश के भविष्य को निर्धारित करेगा।”

उनकी यह भावना उनकी बेटी इंदिरा गांधी को लिखे गए पत्रों में भी परिलक्षित होती है। इन पत्रों को किताबों के रूप में प्रकाशित किया गया था, जैसे “फादर टू हिज़ डॉटर” (1929) और “ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री” (1934), जिनमें नेहरू ने सहज शैली में ऐतिहासिक तथ्यों और मानवीय मूल्यों को संप्रेषित किया।

हालाँकि, नेहरू के जीवनवृत्तकार सर वॉल्टर क्रॉकर ने अपनी पुस्तक “नेहरू: अ कंटेम्पररीज एस्टीमेट” (1966) में लिखा कि नेहरू का बच्चों के प्रति व्यक्तिगत रुचि कम ही थी। क्रॉकर के अनुसार, “नेहरू सार्वजनिक आयोजनों में बच्चों के साथ दिखते ज़रूर थे, लेकिन यह उनके असल व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं था। बच्चों के साथ उनके फोटो और दिखावा मात्र औपचारिकता थी।”

पंडित नेहरू का मानना था कि शिक्षा बच्चों के सर्वांगीण विकास का आधार है। उन्होंने देश में शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उनकी ही पहल पर कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई, जिनमें आईआईटी, आईआईएम, और एम्स शामिल हैं।

नेहरूजी का विचार था कि बच्चे मासूम, जिज्ञासु और सीखने के प्रति उत्सुक होते हैं। उनका मानना था कि बच्चों को उनकी रचनात्मकता और कौशल को विकसित करने का अवसर मिलना चाहिए। उन्होंने कहा था, “बच्चे बगीचे के उन कोमल फूलों की तरह हैं, जिन्हें सावधानीपूर्वक पोषित किया जाना चाहिए।”

बाल दिवस के माध्यम से जागरूकता

बाल दिवस एक ऐसा अवसर है जो बच्चों के अधिकारों और उनके कल्याण की स्थिति पर समाज का ध्यान केंद्रित करता है। यह दिन हमें बच्चों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की आवश्यकता की याद दिलाता है।

बच्चों के अधिकारों में शामिल हैं:

  • जीवन का अधिकार।
  • शिक्षा का अधिकार।
  • स्वास्थ्य और पोषण का अधिकार।
  • खेल और मनोरंजन का अधिकार।
  • बाल शोषण से सुरक्षा का अधिकार।

निष्कर्ष

बाल दिवस सिर्फ एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह बच्चों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की पुनः पुष्टि का दिन है। पंडित नेहरू की दृष्टि और उनके सिद्धांत हमें याद दिलाते हैं कि बच्चों की देखभाल और शिक्षा में निवेश करना न केवल व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण है।

बाल दिवस का संदेश स्पष्ट है: हर बच्चे को प्यार, सम्मान और अवसर मिलना चाहिए। यह हम सभी का कर्तव्य है कि हम बच्चों के लिए एक ऐसा भविष्य सुनिश्चित करें जहां वे अपने सपनों को साकार कर सकें और देश की प्रगति में योगदान दे सकें।

FAQs

प्रश्न 1: बाल दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: बाल दिवस पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर बच्चों के प्रति उनके प्रेम और योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। यह बच्चों के अधिकारों और उनके कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने का दिन है।

प्रश्न 2: पंडित नेहरू को ‘चाचा नेहरू’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर: पंडित नेहरू बच्चों से बहुत प्रेम करते थे और बच्चे भी उन्हें स्नेहपूर्वक ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारते थे।

प्रश्न 3: बाल दिवस पर कौन-कौन सी गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं?
उत्तर: इस दिन स्कूलों और संस्थानों में नृत्य, संगीत, नाटक, खेलकूद प्रतियोगिताएं, और बच्चों की भलाई के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

प्रश्न 4: बाल दिवस कब से मनाया जाने लगा?
उत्तर: भारत में 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में 1964 से मनाया जा रहा है, जब पंडित नेहरू के निधन के बाद उनकी जयंती को बाल दिवस के रूप में घोषित किया गया।

प्रश्न 5: पंडित नेहरू का शिक्षा के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर: पंडित नेहरू का मानना था कि शिक्षा बच्चों के विकास और राष्ट्र निर्माण का आधार है। उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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