होली भारत का एक प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, जिसे रंगों और खुशियों का पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च महीने में पड़ती है। होली 2025 का उत्सव मुख्यतः दो दिनों तक चलता है: पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन रंगों की होली।

होलिका दहन

पहले दिन, जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है, शाम के समय लकड़ियों और उपलों का ढेर बनाकर होलिका जलाई जाती है। यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, भक्त प्रह्लाद को मारने के प्रयास में उनकी बुआ होलिका ने उन्हें आग में बैठाया, लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका स्वयं जल गईं। इस घटना की स्मृति में होलिका दहन किया जाता है।

रंगों की होली

दूसरे दिन, जिसे धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन भी कहा जाता है, लोग सुबह से ही एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल आदि लगाते हैं। ढोल-नगाड़ों की धुन पर होली के गीत गाए जाते हैं, नृत्य किया जाता है, और सभी लोग मिलकर इस पर्व का आनंद लेते हैं। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भूलकर गले मिलते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं, जिससे समाज में प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनता है।

वसंत का स्वागत

होली का पर्व वसंत ऋतु के आगमन का संकेत भी है। फाल्गुन मास में प्रकृति अपने चरम पर होती है; खेतों में सरसों के पीले फूल खिलते हैं, बाग-बगीचों में रंग-बिरंगे फूलों की बहार होती है, और चारों ओर हरियाली छा जाती है। इस समय लोग वसंत के स्वागत में फाग और धमार जैसे लोकगीत गाते हैं, जो होली के उत्साह को और बढ़ाते हैं।

पारंपरिक व्यंजन

होली के अवसर पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें गुझिया प्रमुख है। मावा (खोया) और मैदा से बनी गुझिया में मेवाओं की भरमार होती है, जो स्वाद में लाजवाब होती है। इसके अलावा, कांजी के बड़े, दही भल्ले, पापड़ी चाट, और ठंडाई जैसे व्यंजन भी होली की शोभा बढ़ाते हैं। ठंडाई में भांग मिलाने की परंपरा भी कुछ स्थानों पर प्रचलित है, जो उत्सव में मस्ती का रंग भरती है।

क्षेत्रीय विविधताएँ

भारत के विभिन्न हिस्सों में होली मनाने के तरीके और परंपराएँ अलग-अलग हैं। मथुरा और वृंदावन की होली विश्व प्रसिद्ध है, जहाँ हफ्तों पहले से ही उत्सव शुरू हो जाता है। बरसाना की लट्ठमार होली में महिलाएँ पुरुषों पर लाठियों से प्रहार करती हैं, जो एक अनोखी परंपरा है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘बसंत उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है, जहाँ लोग सफेद कपड़े पहनकर रंगों से खेलते हैं। पंजाब में ‘होला मोहल्ला’ का आयोजन होता है, जिसमें सिक्ख समुदाय के लोग martial arts और घुड़सवारी का प्रदर्शन करते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

होली का त्योहार सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। इस अवसर पर लोग जाति, धर्म, और सामाजिक भेदभाव को भूलकर एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। होली के गीत, नृत्य, और रंगों की मस्ती समाज में भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देती है। इसके अलावा, यह पर्व किसानों के लिए नई फसल के आगमन की खुशी का भी प्रतीक है, जिससे उनकी मेहनत का फल मिलता है।

निष्कर्ष

अतः होली न केवल रंगों का त्योहार है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की विविधता, समृद्धि, और सामाजिक एकता का उत्सव भी है, जो जीवन में आनंद और उल्लास भरता है।

Also Read:
Download Khan Global Studies App for Mobile
Download Khan Global Studies App for All Competitive Exam Preparation
Shares: