भारतीय राष्ट्रगान “जन गण मन” देश की विविधता में एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इसकी रचना रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने की थी, जो नोबेल पुरस्कार विजेता और महान साहित्यकार थे। “जन गण मन” न केवल संगीत और साहित्य का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की भावना का संचार करता है।
रचना और संदर्भ
“जन गण मन” की मूल रचना बंगाली भाषा में 1911 में हुई थी। इसे “भारतो भाग्य बिधाता” शीर्षक के तहत लिखा गया था और इसमें भारत की सांस्कृतिक विविधता, विभिन्न क्षेत्रों, भाषाओं और समुदायों की अद्वितीयता को सम्मानित किया गया है। गीत में भारत की महानता और इसके नागरिकों के प्रति ईश्वर की कृपा का वर्णन किया गया है।
जन गण मन (शाब्दिक अर्थ: ‘लोगों के मन का शासक’) भारत का राष्ट्रीय गान है। इसे मूल रूप से “भारत भाग्य विधाता” के रूप में नोबेल पुरस्कार विजेता और बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने 11 दिसंबर 1911 को बंगाली भाषा में लिखा और संगीतबद्ध किया। इसका पहला पद भारतीय संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रीय गान के रूप में स्वीकार किया। इस गान का पूरा संस्करण गाने में लगभग 52 सेकंड लगते हैं, जबकि छोटा संस्करण, जिसमें पहला और अंतिम पंक्तियाँ शामिल हैं, केवल 20 सेकंड में पूरा होता है।
इतिहास और पृष्ठभूमि
यह गान पहली बार 27 दिसंबर 1911 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में गाया गया था। उस समय इसे रवींद्रनाथ टैगोर की भतीजी ने गाया था। टैगोर ने इसे “भारत भाग्य विधाता” के रूप में लिखा था, जो पांच पदों का एक ब्रह्म समाजीय भजन है। इसका केवल पहला पद राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया गया है।
इस गान का उद्देश्य भारत की “विविधता में एकता” की भावना को व्यक्त करना है। यह गीत टैगोर द्वारा “तत्त्वबोधिनी पत्रिका” में प्रकाशित किया गया था। इसकी धुन राग अल्हैया बिलावल पर आधारित है, जिसे टैगोर ने स्वयं संगीतबद्ध किया था। इसके बाद इसे विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत किया गया, जिनमें 1917 का कांग्रेस सम्मेलन और 1919 में मदनपल्ले (आंध्र प्रदेश) का एक सत्र शामिल है।
1911: पहली बार सार्वजनिक गायन
भारतीय राष्ट्रीय गान “जन गण मन” को पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सार्वजनिक रूप से गाया गया। इस ऐतिहासिक अवसर पर, यह गीत भारत के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना को प्रदर्शित करने के लिए प्रस्तुत किया गया था।
उस समय, भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, और “जन गण मन” ने लोगों के दिलों में आजादी के प्रति प्रेरणा और राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया। इसे गाते समय, भारतीयों ने अपनी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को प्रकट किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष का महत्वपूर्ण हिस्सा बना।
मदनपल्ले और “द मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया”
फरवरी 1919 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने मदनपल्ले के बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज में इसे गाया। कॉलेज की उप-प्राचार्या मार्गरेट कजिन्स, जो एक संगीत विशेषज्ञ थीं, ने इसे पश्चिमी संगीत नोटेशन में सुरक्षित किया। उसी समय टैगोर ने इसे अंग्रेजी में “द मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया” के रूप में अनुवादित किया। यह गीत आज भी मदनपल्ले के बेसेंट हॉल में गाया जाता है।
राष्ट्रीय गान के रूप में चयन और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
1942 में जर्मनी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इसे भारतीय राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया। 1947 में, जब भारत ने आजादी हासिल की, संविधान सभा के मध्यरात्रि सत्र का समापन “जन गण मन” के गायन के साथ हुआ।
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, और उसके बाद 24 जनवरी 1950 को “जन गण मन” को भारत का आधिकारिक राष्ट्रीय गान घोषित किया गया। हालांकि, इसके मूल बंगाली संस्करण से केवल पहले पांच छंदों को ही भारतीय राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया। इसका हिंदी अनुवाद भारतीय राष्ट्रीय भावना को अभिव्यक्त करता है।
भारतीय राष्ट्रगान का महत्व
“जन गण मन” हर भारतीय को देश के प्रति गौरव और सम्मान की भावना से जोड़ता है। इसे गाने का समय लगभग 52 सेकंड है, और यह किसी भी औपचारिक कार्यक्रम, राष्ट्रीय उत्सव और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर गाया जाता है।
भारतीय राष्ट्रगान के बोल
“जन गण मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा,
द्राविड़, उत्कल, बंगा।
विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा,
उच्छल जलधि तरंगा।
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशीष मांगे।
गाहे तव जय गाथा।
जन गण मंगलदायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता।
जय हे! जय हे! जय हे!
जय जय जय जय हे!”
इसमें भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों, भाषाओं, और सांस्कृतिक धरोहरों का समावेश है। यह गीत बताता है कि भारत एकता, शांति और प्रगति का प्रतीक है।
विवाद और स्पष्टिकरण
1911 में जब इसे पहली बार गाया गया, तो इसे लेकर विवाद हुआ कि यह गीत ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा गया था। हालांकि, टैगोर ने 1937 और 1939 में लिखे अपने पत्रों में स्पष्ट किया कि यह गान भारत के भाग्य विधाता, अर्थात् ईश्वर के लिए समर्पित है, न कि किसी सम्राट के लिए।
संगीत और गायन से जुड़ी संहिता
राष्ट्रीय गान को सही तरीके से गाने और उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए सरकार ने विशेष निर्देश जारी किए हैं। गान का पूरा संस्करण 52 सेकंड में और छोटा संस्करण 20 सेकंड में गाया जाता है। इसे गाने के दौरान खड़े होकर सम्मान प्रकट करना अनिवार्य है।
क्षेत्रीय और सांस्कृतिक पहलू
गीत में भारत के सीमावर्ती प्रांतों जैसे पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्रविड़, उत्कल और बंगाल का उल्लेख है। कुछ आलोचक इस बात को लेकर विवाद करते हैं कि इसमें जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्यों और अन्य रियासतों का उल्लेख नहीं है। हालांकि, इसके समर्थक तर्क देते हैं कि यह सीमावर्ती क्षेत्रों को प्रतीकात्मक रूप से शामिल करता है।
आधुनिक समय और कानूनी पहलू
जन गण मन से जुड़े कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर भी चर्चा होती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 1986 में फैसला दिया कि राष्ट्रीय गान गाने के लिए किसी पर भी बाध्यता नहीं है, लेकिन गान के प्रति सम्मान प्रकट करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
“जन गण मन” केवल एक गीत नहीं है; यह हर भारतीय के लिए प्रेरणा, राष्ट्रीय गर्व और एकता का स्रोत है। इसके हर शब्द में देशभक्ति की भावना झलकती है। 1911 में जब इसे पहली बार गाया गया था, तब से लेकर आज तक, यह गान देश के नागरिकों को जोड़ने और प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।