भारतीय संसद लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है, जहाँ देश के कानून बनते हैं और सरकारी कार्यों की देखरेख होती है। संसद का मुख्य उद्देश्य जनता के लिए नीतियाँ बनाना और उन्हें लागू करना है। भारतीय संविधान ने संसद को सर्वोच्च विधायिका के रूप में स्थापित किया है, जो जनता के प्रतिनिधियों के माध्यम से देश के शासन को सुचारू रूप से चलाने का कार्य करती है।

भारतीय संसद का इतिहास

भारत में एक संसदीय लोकतंत्र है, और ग्राम पंचायतें प्राचीन काल से ही जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। पंचायतें न्याय, प्रशासन, भूमि वितरण, और कर संग्रहण का प्रबंधन करती थीं। बड़ी पंचायतें छोटी पंचायतों की देखरेख करती थीं, और सदस्यों का चुनाव किया जाता था, लेकिन कदाचार के मामले में उन्हें हटाया भी जा सकता था।

मध्यकाल में, युद्धों और आक्रमणों के कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं का ह्रास हुआ, लेकिन पंचायतें गांव सभा या नगर परिषद जैसे विभिन्न नामों से काम करती रहीं।

विधायी परिषद की अवधारणा 1833 में शुरू हुई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में सुधारों की मांग के लिए हुई थी। 1857 के विद्रोह के बाद, भारतीय परिषद अधिनियम 1861 में विधायी बदलाव लाया गया, और 1919 तक एक द्विसदनीय विधायिका का गठन किया गया, जिसमें राज्य परिषद और विधायी सभा थी।

1923 में, चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वराज पार्टी ने परिषदों में जगह के लिए संघर्ष किया। कांग्रेस पार्टी ने “भारत छोड़ो” आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1942 के चुनावों में कई सीटें जीतीं।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ने संविधान सभा को पूरी तरह से संप्रभु बना दिया, जिससे उसे देश को शासित करने और संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए पूर्ण विधायी शक्तियां मिल गईं।

संसद की नींव 1950 में भारत की आज़ादी के बाद रखी गई थी, जब हमारा संविधान लागू हुआ था। भारत ने ब्रिटिश शासन के दौरान कई चरणों में संसदीय प्रणाली को अपनाना शुरू किया, लेकिन पूर्ण संसदीय प्रणाली आज़ादी के बाद अस्तित्व में आई। ब्रिटिश संसद की तर्ज पर, भारतीय संसद एक द्विसदनीय प्रणाली है, जिसमें राज्यसभा (उच्च सदन) और लोकसभा (निचला सदन) शामिल हैं।

भारतीय संसद की भूमिका

भारतीय संसद की मुख्य भूमिकाएँ इस प्रकार हैं:

संसद की भूमिका और कार्य भारतीय संसद का मुख्य कार्य देश की विधायिका के रूप में कानून बनाना है, लेकिन इसके अलावा संसद कई महत्वपूर्ण कार्य करती है: 

  • कानून बनाना – संसद देश के नए कानून बनाती है। विधेयकों पर दोनों सदनों में चर्चा होती है तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात वे कानून बन जाते हैं।
  • वित्तीय नियंत्रण – संसद देश के वित्तीय मामलों की एक झलक प्रदान करती है। संसद में सरकार का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है, जिसे लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रमाणित किया जाता है कि देश के दस्तावेज का सही ढंग से उपयोग किया जा रहा है।
  • सरकार की निगरानी – संसद सरकार के कार्यों की निगरानी करती है तथा यह सुनिश्चित करती है कि सरकार ठीक से काम कर रही है। प्रश्नकाल, चर्चा तथा विशेष सरकार के माध्यम से संसद सरकार के समुदायों तथा कार्यकर्ताओं की समीक्षा करती है।
  • जनता की समस्याओं को उठाना – संसद वह मंच है जहाँ सांसद जनता की समस्याओं को उठाते हैं और सरकार को उन्हें हल करने के लिए मजबूर करते हैं।

संसद जनता के लिए कैसे काम करती है?

भारतीय संसद जनता की ज़रूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए विधायिका के रूप में कार्य करती है। यहाँ चुने गए प्रतिनिधि संसद में अपने क्षेत्र की समस्याओं को उठाते हैं और सरकार से समाधान की माँग करते हैं। संसद का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकार द्वारा बनाई जा रही नीतियाँ और योजनाएँ जनहित में हों और प्रभावी ढंग से लागू की जाएँ।

संसदीय सत्र तीन बार आयोजित होता है – बजट सत्र, वाद-विवाद सत्र और शीतकालीन सत्र। 

संसद सत्र संसद और राज्य विधानसभा के अंतर्गत आयोजित होता है। विधेयक पारित करने की प्रक्रिया में विधेयक पेश करना, उस पर चर्चा करना और फिर मतदान करना शामिल है। दोनों सदनों में वाद-विवाद और संवाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भारतीय संसद के सदस्य

लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं, जबकि राज्यसभा के सदस्य राज्य विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं। संसद में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होते हैं, जो विभिन्न राज्यों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। संसद में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और एलजीबीटी के लिए भी प्रावधान है।

राष्ट्रपति 

हालांकि भारत के राष्ट्रपति संसद का हिस्सा होते हैं, लेकिन वह किसी भी सदन में नहीं बैठते और न ही चर्चाओं में भाग लेते हैं। राष्ट्रपति समय-समय पर संसद का सत्र बुलाते हैं। दोनों सदनों द्वारा पारित किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही वह कानून बनता है। इसके अलावा, जब संसद सत्र में नहीं होती और त्वरित कार्रवाई की जरूरत होती है, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं, जिसका प्रभाव कानून के समान होता है।

हर लोकसभा कार्यकाल की शुरुआत में और हर साल के पहले सत्र में, राष्ट्रपति दोनों सदनों को संबोधित करते हैं और सत्र बुलाने के कारणों की जानकारी देते हैं। वह किसी एक या दोनों सदनों को संबोधित कर सकते हैं और लंबित विधेयकों पर संदेश भेज सकते हैं, जिन पर तुरंत विचार किया जाना चाहिए। कुछ विधेयकों को पेश करने या आगे चर्चा करने से पहले राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होती है।

भारतीय संसद मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है:

भारतीय संसद की संरचना भारतीय संसद एक द्विसदनीय (दो सदन) संस्था है, जो सामूहिक रूप से प्लेनरी और राज्यसभा से बनी है।

लोकसभा (निचला सदन)

लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का प्रत्येक भारतीय नागरिक मतदान कर सकता है। लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 530 सदस्य राज्यों से और 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति 2 आंग्ल-भारतीय सदस्यों को मनोनीत कर सकता है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए कुछ सीटें आरक्षित होती हैं। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन आपातकाल की स्थिति में संसद इसकी अवधि एक साल के लिए बढ़ा सकती है।

संसद के दोनों सदनों की शक्तियाँ समान होती हैं, कुछ विशेष मामलों को छोड़कर। गैर-वित्तीय विधेयकों को कानून बनने के लिए दोनों सदनों से पारित होना जरूरी है। राज्यसभा को राष्ट्रपति के महाभियोग, उपराष्ट्रपति को हटाने, संविधान संशोधन और न्यायाधीशों को हटाने जैसे मामलों में लोकसभा के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। राष्ट्रपति के अध्यादेश, आपातकाल की घोषणा और राज्यों में संवैधानिक विफलता को दोनों सदनों में पेश करना आवश्यक है। किसी विधेयक पर असहमति होने पर (धन विधेयक और संविधान संशोधन को छोड़कर) संयुक्त सत्र बुलाया जाता है, जहाँ बहुमत का निर्णय मान्य होता है, और लोकसभा अध्यक्ष अध्यक्षता करते हैं।

राज्यसभा (उच्च सदन)

राज्यसभा राज्यों की परिषद है और यह अप्रत्यक्ष रूप से जनता का प्रतिनिधित्व करती है। इसके सदस्य राज्य विधानसभाओं के चुने हुए सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या उसकी जनसंख्या पर आधारित होती है। राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं और 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं। वर्तमान में इसमें 245 सदस्य हैं, जिनमें से 233 निर्वाचित और 12 मनोनीत सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं, और उपसभापति का चुनाव राज्यसभा के सदस्यों में से किया जाता है।

निष्कर्ष

भारतीय संसद हमारे लोकतंत्र की आत्मा है। यह न केवल कानून बनाती है और सरकार पर नज़र रखती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि देश की शासन व्यवस्था जनता के हित में काम करे। संसद का कामकाज पारदर्शिता, बहस और संवाद पर आधारित है, जो इसे एक मज़बूत लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न: भारतीय संसद में कितने सदन हैं?
उत्तर: भारतीय संसद में दो सदन होते हैं – लोकसभा और राज्यसभा।

प्रश्न: लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर: लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रश्न: राज्यसभा का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर: राज्यसभा एक स्थायी सदन है, इसके सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं और हर दो वर्ष में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं।

प्रश्न: संसद का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर: संसद का मुख्य कार्य कानून बनाना, सरकार की गतिविधियों की निगरानी करना और वित्तीय मामलों को नियंत्रित करना है।

प्रश्न: भारतीय संसद का गठन कब हुआ?
उत्तर: भारतीय संसद का गठन 1950 में हुआ, जब भारतीय संविधान लागू हुआ।

प्रश्न: संसद की जनता के प्रति क्या जिम्मेदारी है?
उत्तर: संसद की जिम्मेदारी जनता की समस्याओं को उठाना और यह सुनिश्चित करना है कि सरकार जनहित में काम करे।

प्रश्न: संसद और उच्च सदन में क्या अंतर है?
उत्तर: उच्च सदन वह होता है जिसमें सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं, जबकि निचला सदन वह होता है जिसमें सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।

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