19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विरोध तेज़ होने लगा था। प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) के दौरान भारत ने ब्रिटेन की मदद के लिए आर्थिक और सैनिक सहयोग दिया था, लेकिन बदले में भारत को कोई राजनीतिक छूट नहीं मिली। इसके उलट ब्रिटिश सरकार ने 1919 में रॉलेट एक्ट लागू कर दिया।
- रॉलेट एक्ट के मुख्य प्रावधान थे:
- किसी भी भारतीय को बिना कारण बताए गिरफ्तार किया जा सकता था।
- बिना मुकदमे के अनिश्चितकालीन कैद संभव थी।
- प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक थी।
यह कानून भारतवासियों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ था। इसके खिलाफ देश भर में गांधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह शुरू हुआ। पंजाब में विरोध बहुत तेज़ था। अमृतसर में दो लोकप्रिय नेताओं — डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को 10 अप्रैल 1919 को गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ्तारी से जनता में भारी गुस्सा फैल गया।
13 अप्रैल 1919 : बैसाखी और बर्बरता (The Massacre Day)
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का पर्व था। यह दिन पंजाब के किसानों और सिख समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। हजारों लोग अमृतसर में मेले और सभा के लिए जमा हुए थे।
जलियांवाला बाग में एक विशाल सभा का आयोजन हुआ, जिसमें लोग रॉलेट एक्ट के विरोध और नेताओं की गिरफ्तारी पर चर्चा करने हेतु शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र हुए थे। इस सभा की अनुमति नहीं थी, लेकिन लोग अनजान थे कि उन पर सैनिक कार्रवाई होगी।
जनरल डायर को जैसे ही सभा की सूचना मिली, उसने उसे “राजद्रोह की योजना” मानते हुए सैनिक कार्रवाई करने का निर्णय लिया। वह अपनी टुकड़ी के साथ जलियांवाला बाग पहुंचा और बिना कोई चेतावनी दिए मुख्य द्वार बंद करवा कर गोली चलाने का आदेश दे दिया।
हत्या और हाहाकार (The Brutal Firing)
जलियांवाला बाग चारों तरफ से ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था। अंदर आने-जाने का एक संकरा रास्ता ही था, जिससे डायर की टुकड़ी आई थी। जब गोलियां चलाई गईं, लोग भागने का कोई रास्ता नहीं खोज सके।
- कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- 1650 गोलियां चलाई गईं।
- फायरिंग 10 मिनट तक लगातार हुई।
- लोगों को भागने की कोई जगह नहीं मिली।
- घबराकर 120+ लोग कुएं में कूदकर मारे गए।
- गोलियों के निशान आज भी बाग की दीवारों पर मौजूद हैं।
यह एक सुनियोजित नरसंहार था। डायर का कहना था कि “यह भारतीयों को सबक सिखाने के लिए जरूरी था।” वह चाहता था कि इस भय से कोई दोबारा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ न बोले।
मृतकों की संख्या (Casualties)
इस हत्याकांड के बाद मृतकों और घायलों की सही संख्या आज तक विवाद का विषय बनी हुई है।
स्रोत | मृतकों की संख्या |
ब्रिटिश सरकार | 379 लोग |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | लगभग 1000 लोग |
स्थानीय गवाह | 1500 से भी अधिक |
इसके अलावा करीब 1200 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें से कई जीवनभर विकलांग हो गए।
ब्रिटिश सरकार ने जानबूझकर आंकड़ों को कम करके प्रस्तुत किया ताकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर बदनामी न हो। कांग्रेस ने घटना की जांच कर एक स्वतंत्र रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें बड़ी संख्या में मौतें दर्ज की गई थीं।
ब्रिटिश प्रतिक्रिया (British Response)
घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने जनरल डायर के खिलाफ कुछ प्रतीकात्मक कदम उठाए:
- हंटर कमिशन बनाया गया, जिसने डायर से पूछताछ की।
- डायर ने अपने बयान में कहा कि यदि और गोलियां होतीं, तो वह और भी लोगों को मार देता।
- कमिशन ने उसे दोषी ठहराया, लेकिन कोई सजा नहीं दी गई।
- ब्रिटेन में उसे “देश का रक्षक” माना गया। कुछ लोगों ने उसके समर्थन में चंदा भी इकट्ठा किया।
- बाद में उसे भारत से वापस बुला लिया गया और सैन्य सेवा से हटा दिया गया, लेकिन वह आराम से जीवन जीता रहा।
यह ब्रिटिश न्याय की दोहरी मानसिकता को दर्शाता है।
उधम सिंह की प्रतिशोध की कहानी (Udham Singh’s Revenge)
उधम सिंह उस समय जलियांवाला बाग में मौजूद थे। उन्होंने जनरल डायर और ओ’ड्वायर की क्रूरता को अपनी आंखों से देखा। उन्होंने प्रतिशोध की प्रतिज्ञा ली।
- 21 साल तक उन्होंने इंतजार किया।
- 13 मार्च 1940 को लंदन में कैक्सटन हॉल में एक सभा के दौरान उन्होंने माइकल ओ’ड्वायर (पंजाब के पूर्व गवर्नर) को गोली मार दी।
- गिरफ्तारी के बाद उन्होंने कहा – “यह बदला नहीं, न्याय है।”
- 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई।
- उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद लिखा — भारत की धार्मिक एकता का प्रतीक।
उधम सिंह आज भी युवाओं के लिए साहस और बलिदान का प्रतीक हैं।
जलियांवाला बाग स्मारक (Memorial and Today)
- 1951 में भारत सरकार ने जलियांवाला बाग को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया।
- 1961 में राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया।
- बाग में आज भी कुआं, गोली के निशान, स्मारक शिलालेख और संग्रहालय मौजूद हैं।
- 2021 में इसका पुनः निर्माण किया गया, लेकिन कुछ हिस्सों को आधुनिक बनाने के कारण आलोचना भी हुई क्योंकि इससे “घटना की वास्तविकता को कम किया गया”।
हर साल यहां पर 13 अप्रैल को श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है, जिसमें देशभर से लोग शहीदों को याद करने आते हैं।
इस घटना का स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव (Impact on Freedom Movement)
- महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार से सभी संबंध समाप्त कर लिए और असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी।
- जनता में अंग्रेजों के प्रति गहरी नफरत और असंतोष भर गया।
- यह घटना क्रांतिकारी आंदोलन के पुनरुत्थान की प्रेरणा बनी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने अंग्रेजों के ‘न्यायपूर्ण शासन’ के मुखौटे को बेनकाब कर दिया।
13 अप्रैल केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज़ादी की राह में कितनी कुर्बानियां दी गई थीं। हमें इन शहीदों की विरासत को संभालना है और अपने लोकतंत्र की रक्षा करनी है।