लोसार महोत्सव: लोसार (Losar) का अर्थ है “नया वर्ष” और यह तिब्बती बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह तिब्बती चंद्र-सौर कैलेंडर (Lunisolar Calendar) के अनुसार नए साल की शुरुआत को चिह्नित करता है। यह पर्व मुख्य रूप से तिब्बत, भूटान, नेपाल, भारत और दुनिया भर में फैले तिब्बती बौद्ध समुदायों द्वारा मनाया जाता है। आमतौर पर, यह फरवरी या मार्च में पड़ता है। साल 2025 में लोसार 28 फरवरी से 2 मार्च तक मनाया जाएगा। तिब्बती नववर्ष की गणना 127 ईसा पूर्व से की जाती है, जब यारलुंग वंश (Yarlung Dynasty) की स्थापना हुई थी।

इतिहास और उत्पत्ति

लोसार का इतिहास बौद्ध धर्म के तिब्बत में आने से पहले का है। यह पर्व तिब्बत के पारंपरिक बोन धर्म (Bon Religion) के सर्दियों में धूप जलाने की परंपरा से जुड़ा हुआ था। नौवें तिब्बती राजा पुडे गंग्याल (317-398 ईस्वी) के शासनकाल में, इस परंपरा का एक फसल उत्सव के साथ समावेश हुआ और इसने लोसार के रूप में आकार लिया।

लोसार और भविष्यवाणी परंपरा

14वें दलाई लामा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि लोसार के दौरान “नेचुंग ओरेकल” (Nechung Oracle) से भविष्यवाणी लेना एक महत्वपूर्ण परंपरा रही है। सदियों से दलाई लामा और तिब्बती सरकार लोसार पर्व के दौरान भविष्यवाणी के लिए इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं।

बौद्ध विद्वान तेनजिन वांग्याल ने लोसार को प्राकृतिक तत्वों से जोड़ते हुए इसे जल देवता “नागा” (Nāga / Klu) को समर्पित एक पर्व बताया है। तिब्बती परंपरा में लोसार के अवसर पर:

  • जल स्रोतों (झरनों) पर जाकर जल देवताओं को धन्यवाद दिया जाता है।
  • धूप और धुआं चढ़ाकर प्राकृतिक शक्तियों को सम्मान दिया जाता है।

लोसार का उत्सव और परंपराएँ

लोसार का उत्सव 15 दिनों तक चलता है, लेकिन पहले तीन दिन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं:

  • पहला दिन:
    • लोग अपने घरों की सफाई कर, धूप और फूलों से सजावट करते हैं।
    • नए कपड़े पहनते हैं और पारंपरिक पेय ‘छंगकोल’ (Changkol) बनाते हैं, जो कि तिब्बती बीयर छांग से तैयार किया जाता है।
  • दूसरा दिन (ग्यालपो लोसार या राजा का लोसार)
    • इस दिन को राजा और समाज के नेताओं के सम्मान के लिए मनाया जाता है।
    • सार्वजनिक समारोह, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • तीसरा दिन:
    • लोग मठों (मोनास्ट्री) में जाकर प्रार्थना करते हैं और वहां दान व धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
    • लोसार से पहले लोग अपने घरों की पूरी तरह सफाई करते हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकले। शुभ संकेतों से घरों को सजाया जाता है, विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं, और परिवार के सदस्य एक साथ दावतों का आनंद लेते हैं।
    • विशेष रूप से, दलाई लामा और अन्य धर्मगुरु इस दिन धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराते हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में लोसार का उत्सव

  • भारत (लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश): इस पर्व के दौरान लोग धार्मिक झंडे लगाते हैं, बौद्ध ग्रंथों का पाठ करते हैं और घी के दीपक जलाते हैं।
  • भूटान: यहाँ लोसार का पर्व पारंपरिक गन्ना और हरी केलों के साथ मनाया जाता है। लोग गाने, नृत्य, तीरंदाजी और उपहार देने जैसी गतिविधियों में भाग लेते हैं।
  • नेपाल: शेरपा (Sherpa) समुदाय और अन्य बौद्ध जातियों द्वारा विभिन्न अनुष्ठानों और सामूहिक आयोजनों के साथ यह पर्व मनाया जाता है।

लोसार की तैयारी और विशेष परंपराएँ

  • लोसार से पहले घर की सफाई और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए धूप जलाना तिब्बती संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • घरों की दीवारों पर शुभ चिह्नों (जैसे सूर्य, चंद्रमा, या स्वस्तिक) को आटे से बनाया जाता है।
  • ऋण चुकाने और झगड़ों को सुलझाने की परंपरा होती है।
  • नई पोशाकें खरीदी जाती हैं और विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं।
  • “फाइमर” (Phyemar) या “पाँच अनाज की बाल्टी” तैयार की जाती है, जिसमें जौ, मक्खन, और तिब्बती जैंबा (tsampa) रखी जाती है।

आधुनिक युग में लोसार का महत्व

आज, लोसार सांस्कृतिक धरोहर, आध्यात्मिक नवीनीकरण और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। यह पर्व तिब्बती बौद्ध समुदाय को अपनी परंपराओं को संरक्षित करने, पिछले वर्ष को याद करने और नए साल का स्वागत आशा और सकारात्मकता के साथ करने का अवसर देता है। भारत के धर्मशाला में दलाई लामा स्वयं इस पर्व के दौरान लोगों को आशीर्वाद देते हैं।

निष्कर्ष

लोसार एक जीवंत और महत्वपूर्ण त्योहार है जो तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है। यह पर्व नई शुरुआत, खुशी और समुदाय के बीच एकता का संदेश देता है।

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