भारत में “पुरुष अधिकारों” का मुद्दा समाज में कम चर्चित है। अक्सर यह माना जाता है कि पुरुष समाज में एक सशक्त स्थिति में होते हैं, लेकिन कई बार पुरुष भी कानूनी और सामाजिक व्यवस्थाओं का शिकार होते हैं। जहां महिलाओं के अधिकारों पर व्यापक चर्चा होती है, वहीं पुरुषों के अधिकारों पर जागरूकता और संरचना का अभाव दिखाई देता है। इस लेख में हम पुरुष अधिकारों, उनकी कानूनी स्थिति और उनके संरक्षण के लिए किए गए उपायों पर चर्चा करेंगे।
परिचय
भारत में पुरुष अधिकार आंदोलन कई स्वतंत्र संगठनों से मिलकर बना है। इस आंदोलन के समर्थक ऐसे कानूनों की मांग करते हैं जो लिंग-निरपेक्ष हों और जो कानून पुरुषों के खिलाफ पक्षपाती हैं, उन्हें हटाया जाए।
पुरुष अधिकार कार्यकर्ता मुख्य रूप से कानूनी मुद्दों जैसे दहेज विरोधी कानून, तलाक, और बच्चों की कस्टडी से जुड़े मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिनके बारे में उनका मानना है कि ये पुरुषों के प्रति भेदभावपूर्ण हैं। उनका यह भी दावा है कि समय के साथ पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं, लेकिन समाजिक शर्मिंदगी या झूठे आरोपों के डर से कई पुरुष इन मामलों को रिपोर्ट नहीं करते। कुछ कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि भारत में बलात्कार और यौन उत्पीड़न से जुड़े कानून पुरुषों के प्रति अन्यायपूर्ण हैं।
1990 और शुरुआती 2000 का दशक
भारत में पुरुष अधिकार संगठनों की शुरुआत 1990 के दशक में कोलकाता, मुंबई और लखनऊ में हुई। ये शहर “पीड़ित पुरुष” (Pirito Purush), “पुरुष हक्क संरक्षण समिति” (Purush Hakka Samrakshan Samiti), और “पत्नी अत्याचार विरोधी मोर्चा” (Patni Atyachar Virodhi Morcha) नामक समूहों का घर बने। इन संगठनों ने मुख्य रूप से पतियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और 498A (भारतीय दंड संहिता) के कथित दुरुपयोग के खिलाफ संघर्ष किया। इसके बाद पीड़ित पुरुषों के लिए एक हेल्पलाइन शुरू की गई।
9 मार्च 2005 को, “सेव इंडियन फैमिली” (Save Indian Family) की स्थापना भारत में कई परिवार अधिकार संगठनों के एकीकरण के रूप में हुई। 19 नवंबर 2007 को, इस संगठन ने भारत में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया।
2006–2010
सितंबर 2008 में, SIFF ने किटप्लाई प्लाईवुड के एक विज्ञापन के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जिसमें एक पत्नी को अपने पति को थप्पड़ मारते हुए दिखाया गया था। इस विज्ञापन के खिलाफ यह दावा किया गया कि यह पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रहा था। इसी महीने चेन्नई स्थित एक संगठन ने एक Pond’s के विज्ञापन और ICICI प्रूडेंशियल इंश्योरेंस के विज्ञापन पर भी इसी तरह की शिकायत दर्ज की, जिनमें पुरुषों के खिलाफ मौखिक और आर्थिक उत्पीड़न को मजाकिया तरीके से दिखाया गया था।
2009 में ‘चाइल्ड्स राइट एंड फैमिली वेलफेयर’ नामक एक एनजीओ की स्थापना की गई, जिसने पुरुषों के लिए बेहतर कस्टडी कानूनों की मांग की।
अप्रैल 2010 में, SIFF ने पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक के पक्ष में बयान जारी किया, जिन पर एक महिला ने शादी से पहले बेवफाई का आरोप लगाया था। SIFF ने मलिक का पासपोर्ट वापस करने की मांग की और IPC की धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता जताई।
2010–2013
सितंबर 2012 में, महिला और बाल विकास मंत्रालय की कृष्णा तीरथ ने एक बिल का प्रस्ताव रखा, जिसमें पतियों के लिए अनिवार्य किया गया कि वे अपनी पत्नियों को वेतन दें। पुरुष अधिकार समूहों ने इसका विरोध किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हस्तक्षेप की मांग की।
2012 में, आमिर खान द्वारा होस्ट किए गए टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ की आलोचना की गई। SIFF के सह-संस्थापक अनिल कुमार के अनुसार, शो में पुरुषों को नकारात्मक रूप से पेश किया गया और घरेलू हिंसा के मुद्दे का केवल एक पक्ष दिखाया गया। दिसंबर 2012 में, लगभग 15,000 पुरुषों ने आमिर खान की फिल्म ‘तलाश’ का बहिष्कार करने का संकल्प लिया।
2014
फरवरी 2014 में, कोलकाता स्थित NGO ‘हृदय’ ने विवाह कानून (संशोधन) बिल के खिलाफ विरोध किया, जिसमें “नो-फॉल्ट डिवोर्स” की अवधारणा शामिल थी। पुरुष अधिकार समूहों ने इसे विवाह संस्था के लिए खतरनाक बताया।
मई 2014 में, SIFF ने ‘SIF One’ नामक एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया, जिससे संकट में फंसे पुरुषों की मदद की जा सके। इसी महीने, एक अखिल भारतीय टेलीफोन हेल्पलाइन भी शुरू की गई।
भारत में एंटी-डोरी कानून (Anti-Dowry Laws)
भारत में दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन कुछ पुरुष अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि इनका दुरुपयोग पति को परेशान करने और वसूली के लिए किया जाता है, जिससे कई विवाहित पुरुष आत्महत्या के लिए मजबूर होते हैं।
मुख्य कानून
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961 – दहेज मांगना अपराध घोषित किया गया।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 1983 – पत्नी पर पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा अत्याचार करने पर सजा का प्रावधान। इसमें आत्महत्या की स्थिति या गंभीर नुकसान के लिए उत्पीड़न और दहेज की मांग भी शामिल है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B, 1879 – शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या की स्थिति में पति व उसके परिवार को जिम्मेदार मानने का प्रावधान।
बदलाव और चुनौतियाँ
जुलाई 2014 से पहले, धारा 498A में बिना वारंट गिरफ्तारी होती थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अब पुलिस को जांच के बाद ही गिरफ्तारी करनी होती है।
आँकड़े और सजा दरें
IPC के तहत 498A में 6% गिरफ्तारी और 4.5% केस दर्ज होते हैं, लेकिन ट्रायल में 15% मामलों में ही सजा होती है।
भारत में पुरुषों के मौलिक अधिकार
संविधान के अनुसार, भारत में पुरुषों के पास भी वैसे ही अधिकार होते हैं जैसे महिलाओं के पास। उन्हें भी समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार प्राप्त है। भारतीय संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेद पुरुषों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करते हैं:
- अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार: सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है। इसमें पुरुषों को भी बिना भेदभाव के समान अधिकार दिए गए हैं।
- अनुच्छेद 19 – स्वतंत्रता का अधिकार: पुरुषों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति, संगठन बनाने और कहीं भी स्वतंत्र रूप से यात्रा करने का अधिकार प्राप्त है।
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: यह अनुच्छेद पुरुषों को गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।
पुरुषों के खिलाफ कानूनी शोषण
कानून के कुछ प्रावधान, जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, उनका गलत इस्तेमाल पुरुषों के खिलाफ भी हो सकता है। उदाहरण के लिए:
- धारा 498A (दहेज उत्पीड़न): यह कानून महिलाओं को दहेज उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था, लेकिन कई मामलों में इसका दुरुपयोग करके निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को परेशान किया जाता है।
- घरेलू हिंसा अधिनियम: हालांकि यह कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए है, लेकिन घरेलू हिंसा का सामना पुरुषों को भी करना पड़ सकता है, और उनके लिए कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं है।
पुरुषों के अधिकारों के लिए संगठन और आंदोलन
भारत में पुरुषों के अधिकारों के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए कई संगठन कार्य कर रहे हैं। जैसे:
- सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (SIFF): यह संगठन पुरुषों के अधिकारों और गलत कानूनी मामलों में फंसे पुरुषों को सहायता प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय पुरुष आयोग (National Men’s Commission) की मांग: भारत में कई पुरुष अधिकार कार्यकर्ता राष्ट्रीय पुरुष आयोग की स्थापना की मांग कर रहे हैं, ताकि पुरुषों के अधिकारों का सही तरीके से संरक्षण हो सके।
पुरुषों के लिए मौजूदा कानूनी अधिकार
- माता-पिता की देखभाल: हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत पुरुष अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर के हकदार होते हैं।
- पिता की संतान पर अधिकार: वर्तमान कानूनों के अनुसार, तलाक के मामलों में बच्चे के संरक्षण के लिए पिता का भी हक होता है, हालांकि यह अदालत के निर्णय पर निर्भर करता है।
- यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा: भारतीय दंड संहिता में पुरुषों के खिलाफ भी झूठे यौन उत्पीड़न के आरोपों से बचाव के लिए कुछ प्रावधान दिए गए हैं, लेकिन यह मुद्दा अधिकतर महिला केंद्रित रहा है।
निष्कर्ष
भारत में पुरुष अधिकारों के प्रति जागरूकता अभी भी एक चुनौती है। कई कानून जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, उनका दुरुपयोग पुरुषों के खिलाफ हो सकता है। इसलिए, एक संतुलित कानूनी व्यवस्था की आवश्यकता है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों के अधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करे।
पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए और अधिक कानूनी सुधारों की आवश्यकता है, ताकि समाज में लैंगिक समानता का सच्चा अनुपालन हो सके।
FAQs
प्रश्न: क्या पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून है?
उत्तर: फिलहाल भारत में कोई विशेष कानून नहीं है जो पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा को सीधे तौर पर संबोधित करता हो। हालांकि, कई संगठन इस दिशा में कानूनी सुधार की मांग कर रहे हैं।
प्रश्न: क्या तलाक के बाद पिता को बच्चों की कस्टडी मिल सकती है?
उत्तर: जी हां, पिता को भी बच्चों की कस्टडी मिल सकती है, लेकिन यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह किसे बच्चों की बेहतरी के लिए उपयुक्त मानती है।
प्रश्न: क्या पुरुष यौन उत्पीड़न के मामलों में शिकायत कर सकते हैं?
उत्तर: भारतीय कानून मुख्यतः महिलाओं के यौन उत्पीड़न को लेकर बनाए गए हैं। हालांकि, यदि पुरुष झूठे आरोपों का शिकार होते हैं, तो वे अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
प्रश्न: क्या पुरुषों के अधिकारों के लिए कोई आयोग है?
उत्तर: वर्तमान में भारत में पुरुषों के अधिकारों के लिए कोई राष्ट्रीय आयोग नहीं है, लेकिन इसके गठन की मांग लगातार बढ़ रही है।
Also Read:
- भारतीय संविधान का निर्माण: विषय और उद्देश्य
- भारतीय संविधान: अनुच्छेद, भाग और अनुसूचियों के बारे में पूरी जानकारी