सावित्रीबाई फुले जयंती हर वर्ष 3 जनवरी को मनाई जाती है। यह दिन भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन को समर्पित है, जिन्होंने महिला शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी।
सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय
- जन्म: 3 जनवरी 1831, नायगांव, महाराष्ट्र
- मृत्यु: 10 मार्च 1897, प्लेग महामारी के दौरान सेवा करते हुए
सावित्रीबाई फुले का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हुआ। विवाह के बाद, ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया और शिक्षिका बनने के लिए प्रेरित किया।
महिलाओं की शिक्षा में योगदान
- पहला बालिका विद्यालय: 1848 में पुणे में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला। सावित्रीबाई स्वयं इस विद्यालय की पहली शिक्षिका बनीं।
- वंचित वर्ग के लिए शिक्षा: सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने उन वर्गों के लिए भी विद्यालय स्थापित किए, जिन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया था। उन्होंने शिक्षा के लिए छात्रवृत्तियां दीं और माता-पिता को इसके महत्व के बारे में जागरूक किया।
- फ़ातिमा शेख का योगदान: मुस्लिम समाज की फ़ातिमा शेख और उस्मान शेख ने विद्यालय के लिए जगह दी। फ़ातिमा शेख को भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका माना जाता है।
- शिक्षा में बाधाएँ: सावित्रीबाई को अक्सर अपमान का सामना करना पड़ा। लोग उन पर पत्थर और कीचड़ फेंकते थे, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना किया और शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखी।
सामाजिक सुधारों में योगदान
- बाल विवाह और सती प्रथा के खिलाफ आवाज: उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा के खिलाफ काम किया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया।
- महिला अधिकार: सावित्रीबाई ने महिला सेवा मंडल जैसे संगठनों की स्थापना की। उन्होंने विधवाओं का सिर मुंडवाने की प्रथा का विरोध किया और नाई समुदाय के सहयोग से इसे रोकने का प्रयास किया।
- पीड़ित महिलाओं के लिए शरणगृह: 1863 में उन्होंने बलात्कार पीड़ित और गर्भवती विधवाओं के लिए शरणगृह स्थापित किया।
- अस्पृश्यता और जातिवाद का विरोध: सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने अपने घर का कुआँ अस्पृश्य समुदाय के लिए खोला और सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
- महामारी के दौरान सेवा: 1897 में प्लेग महामारी के समय सावित्रीबाई ने अपने दत्तक पुत्र के साथ एक क्लिनिक खोला। सेवा करते हुए वह खुद प्लेग से संक्रमित हो गईं और उनका निधन हो गया।
सावित्रीबाई फुले की विरासत, सम्मान और स्मृति:
- 1998 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
- पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय रखा गया।
- 2017 में गूगल ने उनके 186वें जन्मदिवस पर डूडल समर्पित किया।
महिला शिक्षा का प्रतीक: सावित्रीबाई ने दिखाया कि शिक्षा से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है। उनकी विरासत आज भी प्रेरणादायक है।
सावित्रीबाई फुले का संदेश
सावित्रीबाई फुले की कहानी हमें सिखाती है कि शिक्षा और समानता के माध्यम से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है। उनका जीवन एक प्रेरणा है जो हमें हर चुनौती का सामना करते हुए समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा देता है।