उगादि, जिसे युगादि भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार यह नववर्ष का प्रारंभिक दिन होता है। इसे मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का नाम संस्कृत के दो शब्दों ‘युग’ (अर्थात युग) और ‘आदि’ (अर्थात शुरुआत) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ ‘नए युग की शुरुआत’ होता है। यह चैत माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, जो सामान्यतः मार्च-अप्रैल माह में पड़ता है। इस पर्व को नवचंद्रमा (New Moon) के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

उगादि का ऐतिहासिक महत्व और परंपराएँ

उगादि पर्व का उल्लेख प्राचीन हिन्दू ग्रंथों और अभिलेखों में मिलता है। इस दिन हिंदू मंदिरों और धर्मशालाओं में दान-पुण्य करने की परंपरा रही है। यह पर्व केवल दक्षिण भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे महाराष्ट्र और गोवा में ‘गुड़ी पड़वा’ तथा सिंधी समुदाय द्वारा ‘चेटी चंद’ के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा, यह इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर ‘न्येपी’ नाम से भी मनाया जाता है।

परंपराएँ

इस दिन को शुभ मानते हुए लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, रंगोली (मुग्गुलु) बनाते हैं, दरवाजों को आम के पत्तों से सजाते हैं और नए वस्त्र धारण करते हैं। परिवार और मित्रों के साथ मिलकर विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है।

विशेष पकवान और उनकी प्रतीकात्मकता

उगादि के दिन विशेष रूप से ‘पचड़ी’ नामक व्यंजन बनाया जाता है, जो छह विभिन्न स्वादों का संयोजन होता है:

  • कड़वा (नीम के फूल) – जीवन की कठिनाइयों का प्रतीक
  • मीठा (गुड़) – सुखद अनुभव
  • खट्टा (इमली) – जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव
  • तीखा (हरी मिर्च) – साहस और ऊर्जा
  • नमकीन (नमक) – जीवन की आवश्यकताएँ
  • कसैला (कच्चा आम) – आश्चर्य और अप्रत्याशित घटनाएँ

यह व्यंजन हमें जीवन के विविध अनुभवों को अपनाने और संतुलित दृष्टिकोण रखने की सीख देता है।

कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में परंपरागत व्यंजन

  • कर्नाटक: यहाँ ‘होळिगे’ (ओबट्टू) और ‘बेवु-बेला’ नामक मिश्रण (नीम और गुड़) तैयार किया जाता है।
  • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: ‘पुलिहोरा’, ‘बोब्बट्टू’, ‘बूरलु’ और ‘पचड़ी’ प्रमुख व्यंजन हैं।

अन्य क्षेत्रों में समान पर्व

  • गुड़ी पड़वा: महाराष्ट्र और गोवा में मनाया जाता है।
  • चेटी चंद: सिंधी समुदाय में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
  • साजिबु नोंगमा पानबा: मणिपुर में इसी दिन नववर्ष मनाया जाता है।
  • न्येपी: बाली, इंडोनेशिया में नववर्ष के रूप में प्रसिद्ध।

निष्कर्ष

उगादि केवल नववर्ष का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमें यह सीख भी देता है कि जीवन में अच्छे और बुरे अनुभवों का मिश्रण ही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह पर्व न केवल नई शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि हमें हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से भी जोड़ता है। इस शुभ अवसर पर हम अपने जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि की कामना करें। 

“उगादि की हार्दिक शुभकामनाएँ”

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