वीर सावरकर कौन थे?

वीर सावरकर, जिनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, एक महान स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, समाज सुधारक और क्रांतिकारी थे। वे अपने क्रांतिकारी विचारों और हिंदुत्व की विचारधारा के लिए जाने जाते हैं। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख योद्धाओं में से एक थे और हिंदुत्व की विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके अनुयायियों ने उन्हें “वीर” सावरकर की उपाधि दी, जिसका अर्थ है “साहसी”।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम दामोदर सावरकर और राधाबाई सावरकर था। उनके तीन अन्य भाई-बहन थे – गणेश, नारायण और मैनाबाई थे। बचपन से ही वे बहुत तेजस्वी और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत थे। उन्होंने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और बाद में लंदन चले गए, जहां उन्होंने क़ानून की पढ़ाई की।

बाल्यकाल से ही वे क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित थे। 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने गांव में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान एक मस्जिद पर हमला किया और बाद में स्वीकार किया कि उन्होंने “पूरी तरह से मस्जिद को नुकसान पहुंचाया”।

क्रांतिकारी गतिविधियां और लंदन प्रवास

1903 में, सावरकर और उनके बड़े भाई गणेश सावरकर ने मित्र मेला नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसे 1906 में अभिनव भारत सोसाइटी का रूप दिया गया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त करना और हिंदू गौरव को पुनर्स्थापित करना था।

वे 1906 में शिवाजी छात्रवृत्ति के माध्यम से लंदन गए, जहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की। वहां उन्होंने इंडिया हाउस और फ्री इंडिया सोसाइटी से जुड़कर भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की।  

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

वीर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया और भारत को आज़ाद कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वे “अभिनव भारत समाज” नामक संगठन से जुड़े और युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।

वीर सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई और भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने “1857 का स्वतंत्रता संग्राम” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने 1857 की क्रांति को भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम बताया। उनकी इस पुस्तक पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। क्योंकि इसमें भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करने की शक्ति थी।

गिरफ्तारी और सेल्युलर जेल (काला पानी की सजा)

1910 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और भारत लाने के लिए एसएस मोरिया जहाज में बैठाया। जहाज जब मार्सिले (फ्रांस) के बंदरगाह पर रुका, तो सावरकर वहां से भागने का प्रयास किया और राजनीतिक शरण मांगी, लेकिन फ्रांसीसी अधिकारियों ने उन्हें ब्रिटिश पुलिस को सौंप दिया।

भारत लाकर उन्हें नासिक षड्यंत्र केस में 50 साल की कठोर कारावास की सजा दी गई और उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल (काला पानी) भेज दिया गया। वहां उन्होंने 10 साल तक अमानवीय यातनाएं सही।

रिहाई और राजनीतिक गतिविधियां

1924 में, लगातार दया याचिकाएं लिखने के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया लेकिन उन्हें रत्नागिरी जिले में सीमित रहने की शर्त रखी। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने हिंदुत्व विचारधारा को आगे बढ़ाया और हिंदू महासभा से जुड़े।

1937 में जब उनकी नजरबंदी समाप्त हुई, तो वे पूरे देश में हिंदू राष्ट्रवाद और हिंदू एकता का प्रचार करने लगे। अहमदाबाद अधिवेशन में उन्होंने “दो राष्ट्र सिद्धांत” का समर्थन किया।

द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन

1939 में जब कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से विरोध में इस्तीफा दिया, तब हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग और अन्य गैर-कांग्रेसी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। जब गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो सावरकर ने इसका विरोध किया और ब्रिटिश सरकार के लिए भारतीय सैनिकों की भर्ती को बढ़ावा दिया।

हिंदुत्व की विचारधारा

वीर सावरकर ने “हिंदुत्व” की परिभाषा दी और हिंदू समाज को संगठित करने पर जोर दिया। उनकी पुस्तक “हिंदुत्व: हिंदू कौन है?” हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा की एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। वे हिंदू महासभा से जुड़े और भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई।

समाज सुधार में योगदान

वीर सावरकर ने समाज सुधार के कई कार्य किए, जिनमें प्रमुख हैं:

  • अस्पृश्यता (छुआछूत) का विरोध
  • महिलाओं के अधिकारों की वकालत
  • जाति व्यवस्था में सुधार के प्रयास

वीर सावरकर मृत्यु

8 नवंबर 1963 को उनकी पत्नी यमुनाबाई सावरकर का निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने 1 फरवरी 1966 को भोजन और पानी का त्याग कर दिया, जिसे उन्होंने “प्रायोपवेश” (स्वेच्छा से मृत्यु को अपनाना) कहा।

26 फरवरी 1966 को मुंबई में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा में कहा था कि उनके निधन के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड न किया जाए। उनके पुत्र विश्वास सावरकर ने मुंबई के सोनापुर श्मशान गृह में उनका अंतिम संस्कार किया।

वीर सावरकर की विरासत

आज भी वीर सावरकर की विचारधारा और उनका योगदान हमें प्रेरित करता है। उन्हें एक महान क्रांतिकारी, समाज सुधारक और विचारक के रूप में याद किया जाता है। उनके विचार और बलिदान भारत के युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेंगे।

Also Read:
Download Khan Global Studies App for Mobile
Download Khan Global Studies App for All Competitive Exam Preparation
Shares: