पर्यावरण (Environment) हिन्दी का यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है।  “परि” जो कि हमारे चारों है, “आवरण” अथार्त जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है।  यानि जो प्रत्येक जीव के साथ और हमारे चारों तरफ हमेशा व्याप्त है। 

किसी भी जीवधारी और पारितंत्रीय आबादी को जो प्रभावित करें और उनके रूप, जीवन, जीविता को तय करते है, पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है।  साधारण अर्थ में हमारे आस पास हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक  तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। 

पर्यावरण, मानव जीवन का आधार और अस्तित्व की अनिवार्य शर्त है। यह शब्द सामान्यतया पृथ्वी की हवा, पानी, मिट्टी, वनस्पति, वन्य जीवन और अन्य जीवित प्राणियों के समूह को संदर्भित करता है। पर्यावरण न केवल प्राकृतिक संसाधनों की संरचना करता है, बल्कि यह जीव-जंतुओं और मनुष्यों के बीच के जटिल संबंधों को भी निर्धारित करता है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। 

“प्रकृति को गहराई से देखें. तब आप सब कुछ बेहतर ढंग से समझ पाएंगे।” 

-अल्बर्ट आइंस्टीन

पर्यावरण के प्रकार

इसके दो प्रकार होते है- भौतिक पर्यावरण और अभौतिक पर्यावरण 

  • भौतिक पर्यावरण – जिन्हें हम देख छु सकते है, जो हमारे चारो तरफ हमारी आँखों के सामने होता है, जिसकी खूबसूरती का आभास हम अपनी आँखों से या उन्हें छूकर कर सकते है, भौतिक पर्यावरण कहलाता है। 
  • पहले के समय में लोग इन्हें किस तरह सुन्दर बनाए रखा जाए पर जोर देते थे, इनकी देखभाल करते थे, परन्तु आज के लोग इसमें रूचि नहीं रखते है, वो अपनी सहूलियत के हिसाब से वनों को काट कर ऊँची बिल्डिंग, मॉल, रास्ते बनाने में लगे है जबकि वह यह नहीं जानते की यह सब पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहा है। 
  • अभौतिक पर्यावरण – अभौतिक पर्यावरण को हम महसूस कर सकते है, परन्तु देख नहीं सकते हैं, यह हमारे आस पास ही मौजूद होता है।  हम इसे अपने रीति रिवाज, धर्म, आस्था, विश्वास आदि में महसूस कर सकते है।  देखा जाए तो आज के समय में इसका भी पतन होता जा रहा है, लोह आस्था, रीति रिवाज का उलंघन बिना कुछ सोचे करते जा रहे है। 

पर्यावरण की स्थिति

आज पर्यावरण की स्थिति बेहद चिंताजनक है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, वनों की कटाई और आधुनिक जीवनशैली ने पर्यावरण को गंभीर संकट में डाल दिया है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की अत्यधिक वृद्धि के कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसे हम ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के रूप में जानते हैं। इससे हिमनद पिघल रहे हैं, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, और मौसम चक्र में अनियमितताएँ उत्पन्न हो रही हैं।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव न केवल पर्यावरण पर, बल्कि समूची मानवता पर पड़ रहा है। बढ़ते तापमान और सूखे के कारण कृषि उत्पादन पर असर हो रहा है। कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं, जबकि कई स्थानों पर जल संकट गहराता जा रहा है।

पर्यावरण के नुकसान की प्रमुख समस्याएँ

  • वायु प्रदूषण: औद्योगिक कारखानों, वाहनों और जीवाश्म ईंधन के अधिक उपयोग से वायुमंडल में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ रही है। इससे न केवल ग्लोबल वार्मिंग का खतरा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
  • जल प्रदूषण: औद्योगिक कचरे, रासायनिक उर्वरकों और प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग से नदियाँ, झीलें और समुद्र प्रदूषित हो रहे हैं। इससे पीने के पानी की गुणवत्ता गिर रही है और जलीय जीवों का अस्तित्व संकट में है।
  • मृदा क्षरण: अत्यधिक खेती, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। इससे खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट हो रही है।
  • वनों की कटाई: जंगलों की अंधाधुंध कटाई से न केवल जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ा रहा है।

संसाधन न्यूनीकरण

संसाधन न्यूनीकरण का अर्थ है वे संसाधन जो धीरे-धीरे कम या समाप्त हो जाते हैं। प्राकृतिक संसाधन, जैसे जल, कोयला, पेट्रोलियम, खनिज, वनस्पति, और जीव-जंतु, सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं। जब इनका उपयोग उनकी पुनःपूर्ति (regeneration) की तुलना में तेज़ी से किया जाता है, तो यह स्थिति संसाधन न्यूनीकरण कहलाती है।

न्यूनीकरण के कारण

  • अत्यधिक दोहन: औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है।
  • अप्राकृतिक खेती और वनों की कटाई: कृषि के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के चलते जंगलों को काटा जा रहा है, जिससे जैवविविधता (biodiversity) को नुकसान हो रहा है और संसाधनों का संतुलन बिगड़ रहा है।
  • ऊर्जा का अत्यधिक उपभोग: कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसी गैर-नवीकरणीय (non-renewable) ऊर्जा स्रोतों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जो भविष्य में समाप्त हो सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक संसाधनों की पुनःपूर्ति की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन आज के समय की मुख्य परेशानी बन चुका है, जिसका समाधान तो करना दूर लोग उसे और बदतर कर रहें है।  हमारे जीवन में प्रकृति में इतने बदलाव जो हो रहें है, इससे हम अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहें है।  जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में जो बदलाव हो रहें है, वह हमारी फसलों, जिव जंतु, प्रकृति के लिए हानिकारक है। 

समाधान के प्रयास

पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

  • पुनरुपयोग और पुनर्चक्रण: प्लास्टिक और अन्य वस्तुओं का पुनरुपयोग और पुनर्चक्रण करके हम कचरे को कम कर सकते हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।
  • वन संरक्षण: वनों की कटाई को रोकने और नए पेड़ लगाने के प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर नियंत्रित होगा और जैव विविधता की रक्षा होगी।
  • स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग: हमें कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसी प्रदूषक ईंधनों का उपयोग कम करके सौर, पवन और जल ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों की ओर बढ़ना चाहिए।
  • जन जागरूकता: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। शिक्षा, कार्यशालाओं और मीडिया के माध्यम से लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में बताया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

पर्यावरण की सुरक्षा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। यदि हम आज इसे बचाने के लिए कदम नहीं उठाते, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक गंभीर संकट का सामना करेंगी। पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने के लिए हर व्यक्ति, संगठन और सरकार को मिलकर काम करना होगा। हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि हम और हमारी धरती दोनों स्वस्थ और सुरक्षित रह सकें।

इसलिए, आइए हम सब मिलकर अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हों और छोटे-छोटे कदमों से बड़े बदलाव की शुरुआत करें।

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