आज के आधुनिक समाज में महिला सुरक्षा एक ज्वलंत और महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। महिलाओं की सुरक्षा केवल एक सामाजिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक अधिकार है जो उन्हें सम्मान और समानता की भावना के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है। देश में आए दिन ऐसी घटना होना जैसे आम बात बन गई है, किसी को कानून का डर ही नहीं है। आए दिन बलात्कार की खबरें आती रहती है, जिन्हें रोकना तो दूर कम तक नहीं किया जा रहा है, और आखिर में कहा जाता है कि गलती महिला की थी।

महिला सुरक्षा: आज के समाज की प्रमुख आवश्यकता

कहा जाए तो गलती महिला की कहने के बजाए हमारे समाज हमारी सोच की है। देश में रोजाना ऐसे केस सामने आते रहते है, और इनमे से कुछ तो सामने ही नहीं आते है, प्रकाश डालते है कुछ ऐसी घटना पर- 

  • 27 नवंबर 1973 की रात किंग एडवर्ड अस्पताल, परेल (मुंबई) में एक घटना घटी। वहां काम करने वाली जूनियर नर्स अरुणा शानबाग की जिंदगी की वो भयावह रात थी, जिसकी सुबह कभी नहीं आई। जिसके चलते उनकी जिंदगी नर्क जैसी हो गई। नाइट शिफ्ट के दौरान एक स्वीपर ने न सिर्फ उनके साथ दुष्कर्म किया बल्कि कुत्ते की चेन से उनका गला इस हद तक घोंटा कि वो कोमा में चली गई। इस जघन्य कृत्य के लिए आरोपी सोहन लाल वाल्मीकि को सिर्फ सात साल की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उसने अपनी सामान्य जीवनशैली फिर से शुरू कर दी और शादी भी कर ली। लेकिन अरुणा को ये सामान्य जिंदगी नसीब नहीं हुई और आखिरकार इस दुख से लड़ते हुए 18 मई 2015 को कोमा में रहते हुए निमोनिया से उनकी  मृत्यु हो गई।
  • निर्भया केस को ही देख लीजिए, दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की रात एक महिला अपने दोस्त के साथ बस में सफर कर रही थी। बस ड्राइवर समेत कुछ लोगों ने उसकी दोस्त के साथ मारपीट की, महिला के साथ बलात्कार किया और उसे सड़क पर छोड़ दिया। महिला का शरीर घावों से छलनी था। महिला की हालत इतनी गंभीर थी कि उसे इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया, लेकिन शरीर पर इतने घाव होने के कारण 29 दिसंबर 2012 को महिला की मौत हो गई। 30 दिसंबर को पुलिस की निगरानी में उसके शव का अंतिम संस्कार किया गया। एक आरोपी ने जेल में आत्महत्या कर ली और आखिरकार लंबे समय के बाद बाकी दोषियों को 20 मार्च 2020 को फांसी पर लटका दिया गया। महिला को 2013 में मरणोपरांत अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय साहसी महिला पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • टिप्पणी: इसके बाद 2013 में कानून में संशोधन कर ‘निर्भया एक्ट’ बनाया गया जिसमे ये था कि पहले जबरदस्ती या असहमति से बनाए गए संबंधों को ही रेप के दायरे में लाया जाता था लेकिन संशोधन के बाद इसका दायरा बढाया गया।
  • हाल ही में जो सबसे दुखद घटना सामने आई है, जिस पर अब तक कोई कार्रवाई या नतीजा नहीं निकला है, वह कोलकाता के एक अस्पताल में हुई। 9 अगस्त 2024 की रात को कोलकाता के आर.जी.कर अस्पताल में 31 वर्षीय महिला इंटर्न डॉक्टर, जो 36 घंटे की ड्यूटी के बाद सो रही थी, के साथ न केवल बलात्कार किया गया, बल्कि उनके शरीर पर चोटें पहुंचाने के बाद गला घोंटकर उनकी हत्या भी कर दी गई।

यह केस अभी सामने आया ही था कि इसके साथ साथ और भी बलात्कार के केस देश में सामने आए।

लेकिन क्या इन सब कानून, संशोधनों से कुछ असर  हुआ? 

आखिर में झेलना तो महिला को ही पड़ा, जान तो उनकी गई और इनके बाद भी इन केस में कोई कमी न होने की बजाए दिन पर दिन केस बढ़ते ही जा रहें है। 

महिला सुरक्षा क्या है? 

  • महिला सुरक्षा का अर्थ है, महिलाओं को किसी भी प्रकार के हिंसा, उत्पीड़न, और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रखना। इसमें शारीरिक, मानसिक, यौन, और साइबर दुर्व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा शामिल है।
  • महिलाओं को सुरक्षित माहौल में जीने और काम करने का अधिकार होना चाहिए। यह समाज में महिलाओं के आत्म-सम्मान, स्वतंत्रता, और समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब महिलाएँ सुरक्षित महसूस करती हैं, तो वे आत्मनिर्भर और सशक्त बन सकती हैं।
  • आज के समाज को देखते हुए, जरुरी है कि हर महिला सशक्त, आत्मनिर्भर बने, ताकि वह खुद के और अपनों के लिए अपने पैरों पर खड़ी हो सके।

 भारत में महिला सुरक्षा की वर्तमान स्थिति

हाल के वर्षों में कई बड़े मामले सामने आए हैं, जैसे निर्भया केस, जो देशभर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक नया विमर्श शुरू करने का कारण बना। ऐसे मामलों ने यह स्पष्ट किया है कि हमें समाज में महिलाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।

महिला सुरक्षा के लिए कानून और नीतियाँ

भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  •  दहेज प्रतिषेध अधिनियम (1961)
  •  घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (2005)
  •  यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (2013)

महिला सशक्तिकरण के लिए सरकारी योजनाएँ

सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।

  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ 
  • महिला हेल्पलाइन 
  • सखी वन स्टॉप सेंटर 

इन योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं को हर प्रकार की हिंसा से बचाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी साधन उपलब्ध कराना है।

महिला सुरक्षा के प्रमुख मुद्दे

  1. घरेलू हिंसा: घरेलू हिंसा एक प्रमुख मुद्दा है जो अक्सर रिपोर्ट नहीं किया जाता। यह हिंसा शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक हो सकती है, जिससे महिलाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
  2. यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार: यौन उत्पीड़न एक गंभीर समस्या है, जो महिलाओं को कार्यस्थलों, सार्वजनिक स्थानों, और यहां तक कि घर में भी सामना करना पड़ता है। इसके लिए सख्त कानून तो बने हैं, लेकिन इसे रोकने के लिए सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।
  3. साइबर क्राइम और ऑनलाइन उत्पीड़न: डिजिटल युग में, साइबर क्राइम एक बड़ा खतरा बन गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर महिलाएँ ट्रोलिंग, हैकिंग, और साइबर स्टॉकिंग का शिकार होती हैं। इसके लिए मजबूत साइबर सुरक्षा उपाय अपनाने की जरूरत है।
  4. स्कूल में सेक्स एजुकेशन: आज के समय में सेक्स एजुकेशन भी बेहद जरुरी है, लोगों में इसके प्रति एक नकारत्मक सोच है, उन्हें लगता है की उनकी प्रतिष्ठा, समाज को खराब कर देंगी, जबकि आज के समय मं यदि लोगों के बिच इसकी जानकारी नहीं होगी, वह गलत कदम उठाने पर आ जाएँगे। 

महिला सुरक्षा के लिए समाज की भूमिका

  1. परिवार की भूमिका: परिवार महिलाओं की सुरक्षा में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना, परिवार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।
  2. शिक्षा और जागरूकता: स्कूल और कॉलेजों में महिला सुरक्षा की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। इससे लड़कियाँ अपने अधिकारों और सुरक्षा उपायों के बारे में जान सकेंगी।

महिला सुरक्षा को बढ़ाने के उपाय

  1. तकनीकी समाधान: आजकल कई मोबाइल एप्स और डिजिटल प्लेटफार्म्स महिलाओं की सुरक्षा के लिए उपलब्ध हैं, जैसे – Himmat App और 112 India इत्यादि। ये एप्स इमरजेंसी स्थिति में तुरंत मदद पहुंचाने का काम करते हैं।
  2. सामुदायिक भागीदारी: सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाकर महिला सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा सकता है। जब पूरा समाज इस मुद्दे को समझेगा, तब ही वास्तविक सुरक्षा मिल सकेगी।

निष्कर्ष

महिला सुरक्षा केवल सरकार या पुलिस की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। हमें अपनी सोच बदलने और महिलाओं को एक सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान देने के लिए मिलकर काम करना होगा। हमें शुरू से ही अपने घर बच्चों को महिलाओं ही नहीं बल्कि सभी का सम्मान करना सिखाना होगा, उन्हें यह बताना जरुरी है कि महिलाऐं केवल भोग विलास की चीजें नहीं है, उन्हें भी बराबरी का हक और सर उठा कर जीने का हक है। जब तक कोई ठोस कानून व् इस गुनाह के प्रति डर नहीं होगा, तब तक यह केस यूँ ही आते रहेंगे क्योंकि जो डर होना चाहिए वह बचा ही नहीं है, और इसी के चलते यह अपराध बढ़ते जा रहें है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न: महिला सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कानून हैं?
उत्तर: महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत में कई कानून हैं, जैसे – दहेज प्रतिषेध अधिनियम, यौन उत्पीड़न से सुरक्षा अधिनियम, और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम।

प्रश्न: यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट कैसे करें?
उत्तर: यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के लिए आप पुलिस स्टेशन जा सकते हैं या महिला हेल्पलाइन 1091 पर कॉल कर सकते हैं।

प्रश्न: क्या साइबर अपराधों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई विशेष उपाय हैं?
उत्तर: हाँ, साइबर अपराधों से सुरक्षा के लिए Cyber Crime Reporting Portal और Cyber Cell जैसी सेवाएँ उपलब्ध हैं।

प्रश्न: महिला सुरक्षा के लिए कौन-कौन से मोबाइल एप्लिकेशन उपलब्ध हैं?
उत्तर: महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई एप्स हैं, जैसे Himmat App, Raksha App, और 112 India।

प्रश्न: क्या महिला सुरक्षा के लिए स्कूलों में कोई कार्यक्रम होते हैं?
उत्तर: हां, कई स्कूलों और कॉलेजों में महिला सुरक्षा के प्रति जागरूकता के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें आत्मरक्षा की ट्रेनिंग और कानूनी शिक्षा शामिल होती है।

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