हर वर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस (World Heritage Day) या अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस (International Day for Monuments and Sites) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में सांस्कृतिक विविधता की महत्ता को समझना, उसे संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना है।

यूनेस्को के अनुसार, “धरोहर हमारी विरासत है, जिसके साथ हम आज जीवन जीते हैं और जिसे हम आने वाली पीढ़ियों को सौंपते हैं। हमारी प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरें जीवन और प्रेरणा के अपूरणीय स्रोत हैं।”

विश्व धरोहर दिवस का इतिहास

विश्व धरोहर दिवस की शुरुआत 1982 में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद (ICOMOS) द्वारा की गई थी। इसके एक वर्ष बाद, 1983 में यूनेस्को ने इस प्रस्ताव को औपचारिक रूप से मंजूरी दी और यह दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जाने लगा। इस दिन का उद्देश्य लोगों को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना और उन्हें महत्व देना है।

ICOMOS की स्थापना वेनिस चार्टर 1964 के सिद्धांतों पर की गई थी, जो ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों के संरक्षण और पुनर्स्थापन पर आधारित एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) उन स्थलों को विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Sites) के रूप में नामित करता है, जो सांस्कृतिक या प्राकृतिक विरासत के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को दर्शाते हैं। यह नामांकन 1972 में स्थापित “यूनेस्को विश्व विरासत सम्मेलन” (World Heritage Convention) के अंतर्गत होता है, जिसे विभिन्न देशों द्वारा हस्ताक्षर कर स्वीकार किया गया है।

भारत और धरोहरें

सांस्कृतिक दृष्टि से भारत एक अत्यंत समृद्ध देश है। यहां के किलों, मंदिरों, स्तूपों, मकबरों, महलों, बावड़ियों और ऐतिहासिक स्थलों में हमारी बहुरंगी परंपराओं और विविधता की झलक मिलती है।

  • सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत की परिभाषा
    • सांस्कृतिक विरासत में शामिल होते हैं:
    • ऐतिहासिक स्मारक जैसे वास्तुशिल्प कृतियाँ, मूर्तियाँ, शिलालेख,
    • इमारतों के समूह, और महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल।
  • प्राकृतिक विरासत में वे विशेषताएं आती हैं जो:
    • भौतिक या जैविक संरचनाओं से युक्त होती हैं,
    • जिनमें दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों के आवास शामिल होते हैं,
    • और जो वैज्ञानिक, संरक्षण या प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं।
  • भारत की भागीदारी और उपलब्धियाँ

14 नवंबर 1977 भारत ने इस कन्वेंशन को औपचारिक रूप से स्वीकार किया, जिसके बाद भारतीय स्थलों को इस वैश्विक सूची में शामिल किए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। 2025 तक भारत में कुल 43 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • 35 सांस्कृतिक स्थल (जैसे मंदिर, किले, गुफाएँ),
  • 7 प्राकृतिक स्थल (जैसे राष्ट्रीय उद्यान, जैव विविधता क्षेत्र),
  • 1 मिश्रित स्थल — कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान, जो सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है।

भारत विश्व भर में छठे स्थान पर है जहां सबसे अधिक विश्व धरोहर स्थल मौजूद हैं।

  • ऐतिहासिक और हालिया नामांकन

भारत के पहले विश्व धरोहर स्थल थे:

  • अजंता गुफाएँ
  • एलोरा गुफाएँ
  • आगरा का किला
  • ताजमहल

इन सभी को 1983 में यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध किया गया था।

  • सबसे हाल ही में जोड़ा गया स्थल है:
    • मोइदम्स — यह असम के अहोम राजवंश की टीला-दफ़न प्रणाली है, जिसे 2024 में सूची में जोड़ा गया।
  • संकटग्रस्त धरोहर स्थल

कुछ स्थलों को समय-समय पर “खतरे में पड़ी धरोहर” की श्रेणी में भी रखा गया है:

  • मानस वन्यजीव अभयारण्य – 1992 से 2011 के बीच अवैध शिकार और बोडो आंदोलन की गतिविधियों के कारण।
  • हम्पी के स्मारक – 1999 से 2006 तक, तीव्र यातायात और अवैध निर्माण के खतरे के कारण।
  • अंतरराष्ट्रीय और अस्थायी नामांकन

भारत का एक अंतरराष्ट्रीय धरोहर स्थल भी है —

  • “ली कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य”, जो छह अन्य देशों के साथ साझा किया गया है।
  • इसके अलावा, भारत की अस्थायी सूची (Tentative List) में 62 स्थल शामिल हैं, जिन्हें भविष्य में स्थायी विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने पर विचार किया जा सकता है।

इस दिन का महत्व

  • सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना
  • पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
  • नई पीढ़ी को विरासत से जोड़ना
  • सामाजिक सहभागिता के माध्यम से धरोहरों का मूल्य समझाना
  • जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान की तरफ ध्यान आकर्षित करना

विश्व धरोहर स्थल का चयन कैसे होता है?

विश्व धरोहर बनने के लिए किसी स्थल को पहले अस्थायी सूची में डाला जाता है। इसके बाद ICOMOS और IUCN जैसी संस्थाएं उसका मूल्यांकन करती हैं।

हर साल विश्व धरोहर समिति की बैठक होती है, जिसमें तय किया जाता है कि कौन-से स्थल विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाएंगे।

इस चयन प्रक्रिया का उद्देश्य हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करना होता है।

विश्व धरोहर सूची में शामिल होने के लाभ

जब किसी स्थल को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया जाता है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलती है। इससे पर्यटकों की संख्या बढ़ती है, जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। साथ ही, उस स्थल के संरक्षण और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

अगर कोई स्थल आर्थिक रूप से कमजोर देश में स्थित हो, तो यूनेस्को उसकी देखरेख और संरक्षण में मदद करता है।

निष्कर्ष

विश्व धरोहर दिवस न केवल स्मारकों की सुरक्षा का दिन है, बल्कि यह हमारे इतिहास, पहचान और संस्कृति को बचाए रखने का संकल्प है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि धरोहरें केवल ईंट और पत्थर नहीं होतीं, वे हमारी आत्मा की कहानी होती हैं। आइए, इस 18 अप्रैल 2025 को हम सभी मिलकर यह संकल्प लें कि हम अपनी धरोहरों की रक्षा करेंगे और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखेंगे।

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