विश्व NGO दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
हर साल 27 फरवरी को “विश्व NGO दिवस” (World NGO Day) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर के गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के प्रयासों को पहचानना और उनके योगदान को सम्मान देना है। यह दिन उन सभी स्वयंसेवी संस्थाओं को समर्पित है जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर कार्य करती हैं।
विश्व NGO दिवस पहली बार 2009 में मनाया गया था, लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2014 में मान्यता मिली। इस दिन का मुख्य उद्देश्य लोगों को जागरूक करना और NGO को समाज में उनके योगदान के लिए प्रोत्साहित करना है।
भारत में 30 लाख से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGO) कार्यरत हैं, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और गरीबी उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में काम करते हैं।
इतिहास
विश्व NGO दिवस का इतिहास यह दिवस पहली बार 17 अप्रैल 2010 को ‘IX बाल्टिक-सी NGO फोरम’ में 12 सदस्य देशों द्वारा मान्यता प्राप्त करने के बाद आधिकारिक रूप से अस्तित्व में आया। वर्ष 2012 में इसे औपचारिक रूप से अपनाया गया और 2014 में संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार इस दिवस को मनाया। इस पहल का श्रेय ब्रिटेन के सामाजिक उद्यमी ‘मार्सिस लायर्स स्काडमैनिस’ को जाता है, जिन्होंने 2014 में इस दिवस का उद्घाटन किया था। इसका उद्देश्य NGO के योगदान के प्रति जागरूकता फैलाना और उनके अथक प्रयासों को सम्मानित करना है।
NGO क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं?
गैर-सरकारी संगठन (NGO – Non-Governmental Organization) वे संस्थाएँ होती हैं जो सरकार से स्वतंत्र होकर सामाजिक कार्यों में लगी होती हैं। ये संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, आपदा राहत आदि क्षेत्रों में कार्य करते हैं।
NGO के प्रकार
- चैरिटी NGO (Charitable NGOs) – गरीबों की मदद और सामाजिक सेवा कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- विकास संगठन (Development NGOs) – शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका सुधारने का काम करते हैं।
- पर्यावरण NGO (Environmental NGOs) – जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्रदूषण रोकने पर कार्य करते हैं।
- मानवाधिकार NGO (Human Rights NGOs) – महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए कार्य करते हैं।
- आपदा राहत NGO (Disaster Relief NGOs) – प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत और पुनर्वास का काम करते हैं।
भारतीय लोकतंत्र में NGO की भूमिका
- सामाजिक बदलाव में योगदान : NGO सरकार की योजनाओं में आने वाली कमियों को पूरा करने का कार्य करते हैं। ये संगठन उन वर्गों तक भी पहुँचते हैं, जो सरकारी लाभ से वंचित रह जाते हैं। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान NGO ने प्रवासी मजदूरों और वंचित समुदायों को भोजन, दवा और टीकाकरण सहायता प्रदान की।
- अधिकारों की रक्षा और सामुदायिक विकास : NGO मानवाधिकार, महिला अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सुधार के लिए काम करते हैं। कई संगठनों ने बड़े NGO और अनुसंधान एजेंसियों के साथ मिलकर जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे छोटे संगठनों को सशक्त बनाया है।
- नीति निर्माण और लोकतांत्रिक भागीदारी: कुछ NGO सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए जनता की राय जुटाते हैं। ये संगठन सार्वजनिक नीति में सुधार लाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने में सहायक होते हैं।
- सहभागी शासन में योगदान : NGO ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, वन अधिकार अधिनियम-2006, सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 और मनरेगा जैसी योजनाओं के सफल कार्यान्वयन में सरकार के साथ मिलकर काम किया है।
- सामाजिक जागरूकता और सुधार: भारत जैसे देश में, जहाँ अंधविश्वास और रूढ़ियों की जड़ें गहरी हैं, NGO जागरूकता फैलाकर सामाजिक परिवर्तन में अहम भूमिका निभाते हैं।
दुनिया के कुछ सबसे प्रभावशाली और बड़े NGO
- वर्ल्ड का सबसे बड़ा NGO – BRAC (Bangladesh Rural Advancement Committee)
- स्थापना वर्ष: 1972
- मुख्यालय: बांग्लादेश
- कार्य क्षेत्र: गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण
- BRAC दुनिया का सबसे बड़ा NGO माना जाता है। यह 11 से अधिक देशों में कार्यरत है और लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद कर चुका है।
- वर्ल्ड का सबसे अमीर NGO – बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill & Melinda Gates Foundation)
- स्थापना वर्ष: 2000
- मुख्यालय: अमेरिका
- संपत्ति: $50 बिलियन से अधिक
- कार्य क्षेत्र: स्वास्थ्य, टीकाकरण, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा
- बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स द्वारा स्थापित यह संगठन दुनिया के सबसे अमीर NGO में से एक है, जो मुख्य रूप से स्वास्थ्य सेवाओं और गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करता है।
- रेड क्रॉस (International Red Cross and Red Crescent Movement)
- स्थापना वर्ष: 1863
- मुख्यालय: स्विट्ज़रलैंड
- कार्य क्षेत्र: आपदा राहत, स्वास्थ्य, युद्ध पीड़ितों की सहायता
- रेड क्रॉस दुनिया के सबसे पुराने और प्रभावशाली NGO में से एक है, जो युद्धग्रस्त क्षेत्रों और आपदाग्रस्त स्थानों पर मदद पहुंचाता है।
- ऑक्सफैम (Oxfam)
- स्थापना वर्ष: 1942
- मुख्यालय: यूनाइटेड किंगडम
- कार्य क्षेत्र: गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, सामाजिक न्याय
- ऑक्सफैम का उद्देश्य गरीबी को समाप्त करना और सामाजिक असमानता को दूर करना है।
- डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Doctors Without Borders – Médecins Sans Frontières)
- स्थापना वर्ष: 1971
- मुख्यालय: फ्रांस
- कार्य क्षेत्र: स्वास्थ्य सेवाएं, चिकित्सा सहायता
- यह संगठन युद्ध और आपदा क्षेत्रों में चिकित्सा सहायता प्रदान करता है।
विश्व का पहला NGO कौन सा था?
दुनिया का पहला NGO “रेड क्रॉस” (Red Cross) था, जिसकी स्थापना 1863 में जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में हुई थी। इसका उद्देश्य युद्धग्रस्त क्षेत्रों में चिकित्सा और मानवीय सहायता प्रदान करना था।
भारत के प्रमुख NGO और उनका योगदान
- स्माइल फाउंडेशन (Smile Foundation)
- स्थापना वर्ष: 2002
- कार्य क्षेत्र: शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण
- यह संगठन ग्रामीण और वंचित बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है।
- हेल्पएज इंडिया (Help Age India)
- स्थापना वर्ष: 1978
- कार्य क्षेत्र: बुजुर्गों की सहायता, स्वास्थ्य
- यह NGO वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के लिए कार्य करता है और उन्हें आवश्यक चिकित्सा और आर्थिक सहायता प्रदान करता है।
- अक्षय पात्र फाउंडेशन (Akshaya Patra Foundation)
- स्थापना वर्ष: 2000
- कार्य क्षेत्र: मिड-डे मील योजना, भूख मिटाना
- यह NGO लाखों स्कूली बच्चों को मुफ्त भोजन प्रदान करता है।
- गूंज (Goonj)
- स्थापना वर्ष: 1999
- कार्य क्षेत्र: गरीबी उन्मूलन, आपदा राहत
- गूंज गरीबों को कपड़े, भोजन और अन्य आवश्यक चीजें वितरित करता है।
- प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन (Pranab Mukherjee Foundation)
- स्थापना वर्ष: 2019
- कार्य क्षेत्र: शिक्षा, सामाजिक कल्याण
- यह फाउंडेशन शिक्षा और ग्रामीण विकास के लिए काम करता है।
NGO के सामने चुनौतियाँ
- विश्वसनीयता की कमी: कई संगठनों पर धन के दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने के आरोप लगते हैं, जिससे उनकी साख प्रभावित होती है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी: भारत में हजारों NGO कार्यरत हैं, लेकिन उनमें पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी एक बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण कई NGO को काली सूची में डाला गया है।
- धन की कमी: कई NGO के पास सतत वित्तीय सहायता का अभाव है। 2010 के विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत कई NGO के लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं, जिससे उन्हें विदेशी फंडिंग मिलने में कठिनाई हो रही है।
- रणनीतिक योजना और नेटवर्किंग की कमी: कई NGO स्पष्ट रणनीति और मजबूत नेटवर्किंग के अभाव में अपनी गतिविधियों को प्रभावी रूप से संचालित नहीं कर पाते हैं। तकनीकी संसाधनों के उपयोग में कमी भी उनके कार्यों को प्रभावित करती है।
- सीमित क्षमता और प्रशिक्षण की कमी: NGO में संगठनात्मक और तकनीकी क्षमताओं की कमी के कारण वे अपने उद्देश्यों को पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाते।
भारत में NGO कैसे पंजीकृत होते हैं?
भारत में NGO को तीन तरीकों से पंजीकृत किया जा सकता है:
1. सोसाइटी एक्ट, 1860 – इस अधिनियम के तहत पंजीकृत संगठन गैर-लाभकारी कार्यों के लिए होते हैं।
2. ट्रस्ट एक्ट, 1882 – यह ट्रस्टों के रूप में पंजीकृत किया जाता है, जो समाज सेवा के कार्यों के लिए होता है।
3. कंपनी एक्ट, 2013 (धारा 8 कंपनी) – यह संगठनों को कॉर्पोरेट और चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए पंजीकृत करने की अनुमति देता है।
निष्कर्ष: NGO का महत्व और भविष्य
NGO समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे सरकार और समाज के बीच की कड़ी का काम करते हैं और जरूरतमंदों तक सहायता पहुंचाते हैं। दुनिया भर के NGO शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, मानवाधिकार और सामाजिक सुधार के लिए काम कर रहे हैं।
भारत में भी NGO का योगदान काफी महत्वपूर्ण है, और वे गरीबों, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और विकलांग लोगों की मदद कर रहे हैं।
आज के समय में NGO का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि वे दुनिया को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। “विश्व NGO दिवस” उन सभी लोगों को समर्पित है, जो समाज में बदलाव लाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं।
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