तकनीकी प्रगति की तेज़ रफ्तार और नए-नए डिजिटल प्लेटफार्मों के लगातार बदलते स्वरूप के बावजूद, रेडियो आज भी विश्व स्तर पर सबसे विश्वसनीय और व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले मीडिया साधनों में से एक है। रेडियो अपनी दूसरी शताब्दी में प्रवेश कर चुका है और यह अब भी सूचना, मनोरंजन और शिक्षा का एक प्रमुख माध्यम बना हुआ है। सन् 2011 में यूनेस्को के सदस्य देशों द्वारा और 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अनुमोदित, 13 फरवरी को ‘विश्व रेडियो दिवस’ (World Radio Day) के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी। 1800 के दशक से विकसित होते हुए, रेडियो ने विज्ञान, संचार और ऑडियो कार्यक्रमों के संयोजन के माध्यम से अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है।
थीम और उत्सव
इस वर्ष विश्व रेडियो दिवस की थीम “रेडियो: एक सदी की जानकारी, मनोरंजन और शिक्षा” है। यह थीम रेडियो के ऐतिहासिक योगदान, वर्तमान प्रासंगिकता और उज्जवल भविष्य को दर्शाती है।
यूनेस्को विश्व रेडियो दिवस को वैश्विक स्तर पर समन्वित करता है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अपने-अपने रेडियो स्टेशनों और मीडिया साझेदारों के माध्यम से इसे विभिन्न रूपों में मनाते हैं। इनमें विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण, समाचार, ऑडियो-वीडियो संसाधनों को साझा करना आदि शामिल हैं। हर वर्ष यूनेस्को इस अवसर पर विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों के सुझाव भी प्रस्तुत करता है।
भारत में सामुदायिक रेडियो के 20 वर्ष
भारत वर्ष 2024 में सामुदायिक रेडियो की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है। सामुदायिक रेडियो, सार्वजनिक सेवा प्रसारण और व्यावसायिक रेडियो से अलग, रेडियो प्रसारण की एक अनूठी तीसरी श्रेणी है। यह कम शक्ति वाले रेडियो स्टेशन होते हैं, जो स्थानीय समुदायों द्वारा संचालित किए जाते हैं।
सामुदायिक रेडियो की यात्रा वर्ष 2002 में भारत में शुरू हुई, जब सरकार ने प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों को सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने की अनुमति दी। वर्ष 2004 में भारत रत्न श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन शुरू किया गया। 2005 में अन्ना विश्वविद्यालय ने ‘अन्ना कम्युनिटी रेडियो 90.4 MHz’ शुरू किया, जिससे सामुदायिक रेडियो आंदोलन को गति मिली।
सामुदायिक रेडियो क्या है?
यह गैर-लाभकारी, सामुदायिक संगठनों द्वारा संचालित एक स्थानीय रेडियो प्रसारण सेवा है। इसका मुख्य उद्देश्य समुदाय के मुद्दों को उजागर करना और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है।
एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन कम शक्ति वाला एफएम रेडियो स्टेशन होता है, जिसकी प्रसारण सीमा लगभग 12-15 किलोमीटर तक होती है। इसकी स्थापना लागत 10 से 15 लाख रुपये के बीच होती है। शैक्षणिक संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र, गैर-सरकारी संगठन (NGO), पंजीकृत सोसायटी और सार्वजनिक ट्रस्ट जैसे गैर-लाभकारी संगठन सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के पात्र होते हैं।
सामुदायिक रेडियो के लाभ
- सामुदायिक रेडियो स्थानीय समुदाय को एक मंच प्रदान करता है, जहां वे अपने हितों से जुड़े कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकते हैं। चूंकि यह स्थानीय भाषा और बोली में प्रसारित होता है, इसलिए लोग इसे आसानी से समझ सकते हैं और इससे जुड़ाव महसूस करते हैं।
- सामुदायिक रेडियो स्थानीय प्रतिभाओं को भी उभरने का अवसर देता है। यह सरकारी योजनाओं की जानकारी देने, नागरिकों को जागरूक करने, और विकास व सामाजिक बदलाव में योगदान देने का एक प्रभावी माध्यम बन चुका है।
पिछले दशक में अभूतपूर्व वृद्धि
पिछले एक दशक में सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा लगातार क्षमता-विकास कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और वेबिनारों के माध्यम से सामुदायिक रेडियो को बढ़ावा दिया गया है।
वर्तमान में, भारत में 481 सामुदायिक रेडियो स्टेशन कार्यरत हैं, और लगभग 200 अन्य विभिन्न चरणों में हैं। वर्ष 2014 में केवल 140 सामुदायिक रेडियो स्टेशन थे, लेकिन जनवरी 2024 तक यह संख्या बढ़कर 481 हो गई है। यह इस माध्यम की प्रभावशीलता और बढ़ती संभावनाओं को दर्शाता है।
निष्कर्ष
सामुदायिक रेडियो, विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी को मजबूत करने की क्षमता रखता है। भारत जैसे विविध भाषाओं और संस्कृतियों वाले देश में, सामुदायिक रेडियो लोक संगीत और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का भी एक सशक्त माध्यम है। कई सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थानीय लोकगीतों को रिकॉर्ड कर उन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित कर रहे हैं, साथ ही स्थानीय कलाकारों को भी एक मंच प्रदान कर रहे हैं।
समुदाय आधारित यह रेडियो माध्यम सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावी साधन बनकर उभरा है और इसे और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है।