हर वर्ष 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस (World Theatre Day) मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य रंगमंच की कला को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र से जुड़े कलाकारों, निर्देशकों, लेखकों और तकनीशियनों को सम्मान देना है। यह दिवस अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (ITI – International Theatre Institute) द्वारा 1961 में शुरू किया गया था।
रंगमंच (थिएटर) क्या है?
यह एक प्रदर्शन कला (Performing Art) है, जिसमें कलाकार दर्शकों के सामने अभिनय (Acting), संवाद (Dialogue), संगीत (Music), नृत्य (Dance) और अन्य कलात्मक तत्वों के माध्यम से एक कहानी प्रस्तुत करते हैं। यह मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है, जो समाज की भावनाओं, विचारों और संस्कृति को दर्शाता है।
रंगमंच का इतिहास
प्राचीन ग्रीस से जुड़ा रंगमंच का इतिहास हुआ है, जहां थेस्पिस (Thespis) नामक कलाकार ने पहली बार एकल अभिनय किया था। इसी कारण उन्हें ‘प्रथम अभिनेता’ (First Actor) कहा जाता है। ग्रीक नाटकों में मुख्य रूप से दुखांत (Tragedy), सुखांत (Comedy), और व्यंग्य (Satyr Plays) प्रमुख शैलियाँ थीं।
विश्व का पहला रंगमंच
विश्व का पहला प्रसिद्ध रंगमंच ‘थिएटर ऑफ डायोनिसस’ (Theatre of Dionysus) था, जो एथेंस, ग्रीस में स्थित था। यह थिएटर 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था और यहाँ पर ग्रीक नाटककार सोफोक्लेस (Sophocles), यूरिपिड्स (Euripides) और एस्किलस (Aeschylus) के नाटक प्रस्तुत किए जाते थे।
पहला रंगमंचीय प्रदर्शन
पहला रंगमंचीय प्रदर्शन 534 ईसा पूर्व में ग्रीस में हुआ था। इसमें थेस्पिस (Thespis) ने अभिनय किया था, जिन्हें रंगमंच का जनक माना जाता है।
रंगमंच की विकास यात्रा
रंगमंच मानव संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है और समय के साथ इसमें अनेक परिवर्तन हुए हैं। विभिन्न सभ्यताओं ने अपनी-अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों के अनुसार रंगमंच का विकास किया। यह विकास कई चरणों से गुजरा और विभिन्न रूपों में बंट गया। प्रमुख रूप से रंगमंच के निम्नलिखित प्रकार देखे गए हैं:
- ग्रीक रंगमंच (Greek Theatre)
ग्रीक रंगमंच की शुरुआत प्राचीन यूनान में हुई, जिसे नाटक और रंगमंच का जनक माना जाता है। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीस में नाट्य प्रदर्शन होने लगे।
- विशेषताएँ:
- ओपन-एयर थिएटर – ग्रीक नाट्यशालाएँ खुले स्थानों पर पहाड़ियों पर बनाई जाती थीं।
- मुखौटे (Masks) का प्रयोग – अभिनेताओं द्वारा विभिन्न भावों को दर्शाने के लिए मुखौटे पहने जाते थे।
- त्रासदी और हास्य (Tragedy and Comedy) – ग्रीक नाटकों को मुख्यतः त्रासदी (Tragedy), हास्य (Comedy) और सत्यिर (Satyr Play) में विभाजित किया गया।
- प्रसिद्ध नाटककार – एस्किलस (Aeschylus), सोफोक्लेस (Sophocles), यूरिपिडीस (Euripides), और अरिस्टोफेनीस (Aristophanes) जैसे नाटककारों ने ग्रीक रंगमंच को समृद्ध किया।
- रोमन रंगमंच (Roman Theatre)
ग्रीक रंगमंच से प्रभावित होकर रोमन सभ्यता ने अपने नाटकों का विकास किया। लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से रोमन रंगमंच का प्रभाव बढ़ा।
- विशेषताएँ:
- बड़े रंगमंच (Amphitheatre) – रोमन नाट्यशालाएँ विशाल और भव्य होती थीं।
- हास्य और व्यंग्य प्रधान नाटक – रोमन रंगमंच में हास्यपूर्ण (Comedy) और व्यंग्यात्मक (Satire) नाटक अधिक प्रचलित थे।
- ग्लैडीएटर और नाट्य प्रदर्शन – रोमन युग में नाटक के साथ-साथ ग्लैडीएटर मुकाबले भी होते थे।
- प्रसिद्ध नाटककार – प्लॉटस (Plautus) और टेरेन्स (Terence) रोमन नाटककारों में प्रमुख थे।
- एशियाई रंगमंच (Asian Theatre)
एशियाई रंगमंच विविध और पारंपरिक रूपों में विकसित हुआ। इसमें चीन, जापान, भारत और अन्य पूर्वी देशों की नाट्य परंपराएँ सम्मिलित हैं।
- विशेषताएँ:
- नृत्य और संगीत का प्रयोग – एशियाई रंगमंच में अभिनय के साथ नृत्य और संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है।
- मुखौटे और पारंपरिक वेशभूषा – विशेष प्रकार के मुखौटे और पारंपरिक परिधानों का उपयोग किया जाता है।
- प्रसिद्ध रंगमंच शैलियाँ:
- नोह (Noh) और काबुकी (Kabuki) – जापानी रंगमंच
- पेइचिंग ओपेरा (Peking Opera) – चीनी रंगमंच
- कोरियन पानसोरी (Korean Pansori) – कोरियन नाट्य शैली
- यूरोपीय रंगमंच (European Theatre)
यूरोप में रंगमंच का विकास मध्ययुगीन धार्मिक नाटकों से लेकर आधुनिक युग तक कई चरणों में हुआ।
- विशेषताएँ:
- धार्मिक नाटकों से शुरुआत – प्रारंभ में ईसाई धर्म से जुड़े नाटकों का मंचन किया जाता था।
- शेक्सपीरियन रंगमंच – विलियम शेक्सपीयर (William Shakespeare) ने रंगमंच को एक नई ऊँचाई दी।
- क्लासिक और आधुनिक नाटक – यूरोप में रंगमंच का विकास क्लासिकल (Classical), रोमांटिक (Romantic), यथार्थवादी (Realistic), और आधुनिक (Modern Theatre) शैलियों में हुआ।
- प्रसिद्ध नाटककार:
- विलियम शेक्सपीयर (William Shakespeare) – ‘हैमलेट’, ‘मैकबेथ’, ‘ओथेलो’ जैसे नाटकों के रचयिता।
- मोलिएर (Molière) – फ्रांसिसी हास्य नाटककार।
- हेनरिक इब्सन (Henrik Ibsen) – आधुनिक यथार्थवादी रंगमंच के जनक।
- भारतीय रंगमंच (Indian Theatre)
भारतीय रंगमंच की जड़ें प्राचीन वेदों और नाट्यशास्त्र में मिलती हैं। भारत में रंगमंच की शुरुआत भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ से मानी जाती है। जिसे संस्कृत नाटक (Sanskrit Drama) का आधार माना जाता है।
- विशेषताएँ:
- संस्कृत नाटक (Sanskrit Drama) – कालिदास, भास, और शूद्रक जैसे नाटककारों ने संस्कृत रंगमंच को समृद्ध किया।
- लोक नाट्य परंपराएँ (Folk Theatre) – विभिन्न राज्यों में अलग-अलग प्रकार के लोक नाट्य प्रचलित हैं, जैसे:
- यक्षगान (कर्नाटक)
- कथकली (केरल)
- नौटंकी (उत्तर भारत)
- तमाशा (महाराष्ट्र)
- भावई (गुजरात और राजस्थान) आदि।
- आधुनिक रंगमंच – भारत में आधुनिक रंगमंच का विकास पारसी थिएटर, सामाजिक नाटक और राजनीतिक नाटकों के रूप में हुआ।
- प्रसिद्ध नाटककार:
- कालिदास – ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’, ‘मेघदूत’।
- गिरीश कर्नाड – ‘ययाति’, ‘तुगलक’।
- बादल सरकार – ‘पगला घोड़ा’, ‘एवम इंद्रजीत’।
- हबीब तनवीर – आधुनिक लोक रंगमंच के जनक।
विश्व रंगमंच दिवस का इतिहास
1961 में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (ITI) ने यूनेस्को (UNESCO) के सहयोग से 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस के रूप में घोषित किया। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य रंगमंच की महत्ता को बढ़ावा देना और नाट्य कला को संरक्षित करना है।
विश्व रंगमंच दिवस का महत्व
- रंगमंच कला को प्रोत्साहित करना
- कलाकारों और निर्देशकों को सम्मान देना
- समाज के प्रति रंगमंच की भूमिका को बढ़ावा देना
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाना
निष्कर्ष
रंगमंच केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज का दर्पण भी है। यह हमें जीवन की सच्चाइयों से अवगत कराता है और सामाजिक समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करता है। विश्व रंगमंच दिवस हमें इस कला को जीवंत बनाए रखने और इसे नई पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए प्रेरित करता है।